गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका की जेल में कई तरह के अनुभव हुए। एक बार बड़े अधिकारी ने जेल के एक दरोगा को आदेश दिया कि भारतीयों के लिए जो शौचालय विशेष रूप से तैयार किए गए हैं, उन्हें साफ करने के लिए दो भारतीय कैदियों को नियुक्त किया जाए। दरोगा यह संदेश लेकर गांधीजी के पास आया और बोला, ‘मुझे इस काम के लिए दो व्यक्तियों की जरूरत है।’ गांधीजी ने सोचा, हर कैदी इस काम को गंदा समझता है। ऐसे में जो भी करेगा मजबूरी में ही करेगा। किसी को मजबूर करने से अच्छा यह होगा कि सब स्वेच्छा से इस काम के लिए तैयार हों। लेकिन यह तभी हो सकता है जब कोई एक कैदी खुशी-खुशी यह काम करना शुरू करे। ऐसा सोचकर गांधी जी ने मुस्कराते हुए दरोगा से कहा, ‘दूसरे का तो अभी पता नहीं, लेकिन पहला व्यक्ति मैं हाजिर हूं। बताइए कहां से शुरू करना है काम।’
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गांधीजी के इस तरह शौचालय की सफाई में जुटने का असर अन्य कैदियों पर पड़ा। कुछ कैदी उनकी सहायता के लिए आगे बढ़े। इस पर गांधीजी अत्यंत खुश हुए और उनसे बोले, ‘जेल में हमें जो काम मिलता है, यदि हम उसके प्रति घृणा का भाव रखें तो हम खरी लड़ाई में हिस्सा लेने के अयोग्य माने जाते हैं। हमें देश को आजादी दिलाने के लिए और सभी लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए यह समझना चाहिए कि जेल प्रताड़ना केंद्र या सजा केंद्र नहीं, अपितु ऐसा सुधार केंद्र है, जो हमें असामाजिकता से सामाजिकता की ओर ले जाता है।’
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धीरे-धीरे यह बात सभी कैदियों तक पहुंची और सबने गांधीजी की इस बात का मर्म समझा कि ‘छोटे-बड़े काम का भेद मिटाकर ही हम जीवन की हर लड़ाई में विजय पा सकते हैं।’ इसके बाद वहां शौचालयों की सफाई करने में किसी भारतीय ने शर्म महसूस नहीं की।
संकलन : राधा नाचीज