आचार्य प्रशांत से जानिए कर्मा कैसे आपके जीवन की दिशा बदल देता है

कर्मा या कर्म इसकी बात तो हम सभी करते हैं। गीता हो या अन्य ग्रंथ सभी हमें कर्मों के बारे में ही समझाते हैं। कर्म की गति से ही हमारे वर्तमान और भविष्य का निर्माण होता है। आचार्य प्रशांत ने भी अपनी किताब कर्मा के माध्यम से पाठकों को इसका सही अर्थ समझाने का प्रयास किया है जिसमे वो बताते है कि क्यों कर्मा यानी कर्म कई लोगो के लिए एक अनसुलझी पहेली बनी है जो दिखाता है कि हम जो भी करते है या सोचते है वो ज्यादातर गलत क्यों होता है! उन्होंने इस किताब में जिंदगी जीने के तरीकों व जिंदगी में सही कदम उठाने पर जोर दिया है वे बताते है कि कर्मा से महत्वपूर्ण कर्ता होता है यानी ‘आप’ जो विभिन्न कर्म करते हैं व जिसके होने से ही कर्म का कोई महत्व होता है!

कई किताबों में पाठकों का बंधे रहना मुश्किल हो जाता है कहानी कही से कही पहुंच जाती है मगर लेखक ने इस किताब में पाठकों को एक ताल में पढ़ने को मजबूर किया है, उन्होंने कहानी में अपनी जिंदगी के चार चरण चिह्नित किये हैं जिसकी शुरुवात ब्रह्मचर्य से होती है, जहां सही गलत का फ़र्क़ समझ आता है, इसके पश्चात गृहस्थ आश्रम में जिम्मेदारी व समझदारी से कर्म करते हुए सीखते हैं कि जो कार्य किया है उसका परिणाम क्या वाकई में सही हुआ? इसके बाद वानप्रस्थ में इन सभी सवालों से अलग उन्हें बाहर से देखकर पता चलता है कि जो हम कार्य करते है वह असल कार्य से अलग नहीं है जिसके उपरांत समझ आता है कि संन्यास ही आगे बढ़ते रहने का प्रतिबिम्ब और समापन है!

लेखक ने प्रत्येक अनुभाग को बारीकियों के साथ लिखा है व सभी मौलिक व महत्वपूर्ण सवालों का पारंपरिक रूप से जवाब देने का प्रयास किया है! अगर आप इस किताब को पढ़ते हैं तो आपको जिंदगी को एक नए तरीके से देखने में मदद मिलेगी व साथ ही आने वाली समस्याओं व उसके निवारण के लिए आप खुद को तैयार कर पाएंगे। और जिंदगी को आज तक आप जिस नजरिये से देखते आ रहे हैं उससे अलग ही आपको जीवन का एक नया रंग ढंग नजर आएगा।

आचार्य प्रशांत की पुस्तक कर्मा आपको कर्म के माध्यम से जीवन को अपने मूल लक्ष्य तक ले जाने में मददगार हो सकता है।