हम्बोल्ड ने आक्रोशित स्वर में कहा, ‘झूठा आरोप लगाने वाले इस समाचार पत्र के संपादक और पत्रकार को दंडित कर उन्हें जेल में क्यों नहीं डाल देते?’ इस प्रतिक्रिया पर जैफरसन फिर मुस्कराए और बोले, ‘इस समाचार पत्र को अपने पास रख लीजिए। जहां कहीं भी प्रेस की आजादी पर सवाल खड़ा किया जाए, वहां इसे लोगों को दिखाइए और बताइए कि यह पत्र आपको कहां मिला?’ उन्होंने आगे कहा कि मेरे ऊपर लगे आरोपों पर निजी प्रतिक्रिया दूं या दंड दिलवाने का काम अगर मैं करवाने लगूं तो उस शक्ति का दुरुपयोग हो जाएगा जो जनता से मुझे मिली है। मैं ऐसा करने के लिए अधिकृत नहीं हूं। यह काम भी प्रेस और जनता का है और उन्हें यह काम करने दिया जाए।
इसके बाद हम्बोल्ड जहां-जहां गए, कृषि विज्ञान और पर्यावरण पर व्याख्यान के साथ प्रेस की आजादी पर बोलने से बाज नहीं आए और पत्र को हवा में लहराकर दिखाते रहे। उनके वक्तव्य से जैफरसन की उदारता, प्रेस की आजादी और प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति सोच वहां के बौद्धिक वर्ग में पहुंचती रही। यह यात्रा, बात और मुलाकात इतनी अच्छी रही कि आने वाले इक्कीस वर्षों तक दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों पर पत्राचार चलता रहा। ये पत्र आज भी दोनों के नजरिए को समझने में सहायक हैं।- संकलन : हरिप्रसाद राय