गुरुदेव ने कहा, ‘वत्स! मन को साधने के लिए ध्यान अनिवार्य है।’ फिर शिष्य ने पूछा, ‘गुरुदेव! क्या मन को साधना जरूरी है? मेरा मन तो ध्यान में बिल्कुल नहीं लगता।’ शिष्य को समझाते हुए गुरु ने कहा, ‘मन को साधना इसलिए जरूरी है क्योंकि मन बहुत ही चंचल है। चंचल मन से किसी भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता।’ शिष्य ने पूछा, ‘गुरुदेव! मन चंचल क्यों है?’ अब शिष्य का प्रश्न सहज था, पर उसका उत्तर उतना सरल नहीं था। वास्तव में इस एक ही प्रश्न में संपूर्ण योग का सार छिपा हुआ है। फिर गुरुदेव ने पूछा, ‘एक बात बताओ। जिस मनुष्य के पास रहने का कोई ठिकाना न हो, वह क्या करेगा?’ इस पर शिष्य ने बोला, ‘गुरुदेव, वह दर-दर भटकता फिरेगा, जब तक कि उसे रहने का कोई ठिकाना नहीं मिल जाता।’
गुरुदेव रामानंद मुस्कुराए और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘वत्स! यही कारण है कि मन चंचल है। मन चंचल इसीलिए है क्योंकि उसके पास ठहरने का कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। कोई ऐसी जगह नहीं, जहां उसे असीम और अनंत आनंद की अनुभूति हो सके। शिष्य को अपने प्रश्न का जवाब मिल चुका था कि साधना क्यों जरूरी है।– संकलन : आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’