बात उस समय की है जब विद्यालय निर्माण के दौरान वहां लकड़ी का कार्य चल रहा था। एक दिन गोपाल दास धर्म प्रचार के लिए बाहर गए हुए थे। उनके पीछे उनकी पत्नी ने बढ़ई से लकड़ी के बचे टुकडों से बच्चे के खेलने के लिए एक खिलौना बनवा लिया। उसे बनाने में बढ़ई को दो घंटे का समय लगा। शाम को बाहर से आने पर पंडित जी की नजर उस खिलौने पर पड़ी तो उन्होंने पत्नी से पूछा कि यह कहां से आया है। पत्नी ने बता दिया कि बढ़ई से बनवाया है।
पंडित जी पत्नी की बात सुनकर नाराज हुए और उन्होंने तत्काल हिसाब लगाकर लकड़ी का मूल्य और बढ़ई के पारिश्रमिक के पैसे विद्यालय के हिसाब में जमा करवा दिए। जब अन्य लोगों को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा, ‘पंडितजी, जरा सी बात का इतना हिसाब क्यों करते हैं?’ लोगों की बात सुनकर पंडित जी ने कहा, ‘जो एक तिल की चोरी कर सकता है वह हीरे की चोरी भी कर सकता है।’ उनका उत्तर सुनकर सभी निरुत्तर हो गए। पंडितजी का जीवन ज्ञान और चरित्र का सुंदर समन्वय था। उन्होंने आजीवन उसका पालन किया।– संकलन : रमेश जैन