जंगल में उसने अपने लिए झोपड़ी और गायों के लिए गोशाला बनाई। वह गायों की सेवा करने लगा। धीरे-धीरे गाएं स्वस्थ हो गईं और बछड़ों को जन्म देने लगीं। बैलों की सेवा से उसे ईश्वरीय सच का एक चौथाई ज्ञान प्राप्त हुआ। आश्रम की ओर लौटते समय अग्नि ने उसे उसी तरह ईश्वरीय सत्य के एक चौथाई रहस्य की जानकारी दी। आगे की राह में एक हंस और अंत में तालाब के किनारे एक बत्तख से उसे ईश्वरीय सत्य का ज्ञान मिला। आश्रम पहुंचने पर गौतम ऋषि ने सत्यकामा का स्वागत किया और कहा, ‘जो ज्ञान तुमने पाया है क्या उससे हमें भी लाभान्वित करोगे?’
सत्यकामा ने कहा, ‘गुरुदेव, मैंने ज्ञान मानव से नहीं बल्कि बैल, अग्नि, हंस और बत्तख से पाया है।’ गौतम ऋषि ने कहा कि ज्ञान का स्रोत महत्वपूर्ण नहीं होता है। तुमने मन, कर्म और वचन से गायों को कभी आहत नहीं किया और कर्मकांड से दूर रहकर सच्चा कर्म किया है। यही कारण है कि ईश्वरीय ज्ञान का तुम्हें लाभ मिला। अब तुम अपने ज्ञान से समाज को लाभान्वित करो और कर्मकांड के स्थान पर लोगों को सत्कर्म की शिक्षा दो। आगे चलकर सत्यकामा के वचनों को संग्रहित किया गया और उसकी मां के नाम पर उन्हें जबोला उपनिषद के नाम से जाना गया जो हमें कर्मकांड नहीं बल्कि कर्म की शिक्षा देता है।– संकलन : हरिप्रसाद राय