इस तरह बापू ने चुकाया था रणछोड़ दास का उपकार

एक दिन यरवदा जेल में गांधी जी ने रणछोड़ दास पटवारी जी के लिए एक लंबा पत्र लिखवाया। रणछोड़ दास जी ने गांधी जी से 88 सवाल किए थे। गांधी जी ने धैर्यपूर्वक उन सभी सवालों के जवाब बारी-बारी से लिखवाए। उन्हें इतने सारे सवालों के जवाब लिखवाते देख कर उनके एक सहयोगी से नहीं रहा गया। वह बोला, ‘आप इतने सारे सवालों के जवाब देते-देते थक गए होंगे। जरूरी तो नहीं था कि सभी सवालों के जवाब दिए जाएं।’ गांधी जी बोले, ‘उनके सवालों के जवाब देना जरूरी था। वह कभी आड़े वक्त मेरे काम आए थे।’ गांधी जी की बात सुनकर उनके सहयोगी बोले कि आप कब तक उनका उपकार मानते रहेंगे। गांधी जी बोले, ‘मैं तो अपने अंतिम समय तक रणछोड़ दास का उपकार मानता रहूंगा और मरते दम तक उन्हें नहीं भूलूंगा। दूसरी बात यह भी है कि जब कोई प्रश्न करे और उसका जवाब देने का सामर्थ्य हो तो अवश्य ही जवाब देने में कभी कोताही नहीं बरतनी चाहिए।’

पत्र के जवाब के अंत में उन्होंने लिखवाया- मोहनदास का प्रणाम। तो उनके सहयोगी बोले, ‘क्या वे आपसे उम्र में बड़े हैं। गांधी जी ने कहा, ‘हां, वे मुझसे उम्र में बड़े हैं। लगभग आठ वर्ष तो बड़े होंगे ही। मैंने उन्हें सदा अपना बड़ा भाई ही माना है। उन्होंने मुझे उस समय पांच हजार रुपये नहीं दिए होते तो मैं न तो मुंबई जा पाता और न ही विलायत जाकर पढ़ाई कर पाता। यही नहीं, जब मैं मैट्रिकुलेशन की परीक्षा देने गया था, तब इन्होंने ही मुझे अपने पास ठहराया था और अपने परिवार के सभी सदस्यों को हर संभव मदद देने को कहा था।’ कहते-कहते बापू भावुक हो उठे।

उन्हें भावुक होता देख उस सहयोगी ने उनसे कहा, ‘अब सब समझ गया। मैं समझ गया कि आप पर उनका बहुत उपकार है। इस पर गांधी जी बोले, ‘आज मैं जो कुछ भी हूं, वह रणछोड़ दास जी का आशीर्वाद है। ’

संकलन : दीनदयाल मुरारका