एक दिन बड़ौदा के राजा ने विष्णु पंत छत्रे को दरबार में बुलाकर कहा, ‘कभी हमें उस्ताद रहमत खां का गाना सुनवाइए।’ छत्रे ने कहा, ‘महाराज वे बड़े सनकी गवैये हैं। कहने से कभी नहीं गाते। सनक सवार हो जाए तो रात-रात भर गाते रहते हैं।’ राजा ने कहा, जब उन्हें सनक सवार हो और गा रहे हों, तो हमें तुरंत बुला लेना। एक दिन छत्रे देखकर हैरान रह गए कि उस्ताद नल के नीचे बैठे भैरवी अलाप रहे हैं। सुर-ताल के लिए वह लोटा बजा रहे थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि महाराजा को उनके गीत सुनाने का मौका इतनी जल्दी मिल जाएगा।
उस्ताद रहमत खां अपने गाने के धुन में मग्न थे। छत्रे ने तुरंत इस बात की खबर राजा को भेजी। राजा भी खबर सुनकर प्रसन्न हो गए। वह बहुत दिनों से उस्ताद रहमत खां को सुनने के लिए लालायित थे। साधारण भेष में तुरंत वहां आ गए और गाना सुनकर मुग्ध हो गए। उस्ताद उन्हें पहचान नहीं पाए। गाने के प्रति उनकी तन्मयता को देखते हुए उस्ताद ने उनसे पूछा, तुम्हें गाना अच्छा लग रहा है? राजा ने हामी भर दी। उस्ताद ने लोटा राजा के हाथ में दिया और बोले, ‘तू लोटा मांज। मैं तुझे गाना सुनाता हूं।’ गाने का दौर घंटों चलता रहा। राजा ने भी बिना अपनी पहचान बताए उनके गीतों का आनंद लिया।– संकलन: दीनदयाल मुरारका