पत्नी परमेश्वरी व पति परमेश्वर एक दूसरे के पूरक हैं, दोनों समान हैं। पत्नी को परमेश्वरी जो स्वीकारे वही पति परमेश्वर है। एक प्रकृति व दूसरा पुरुष है। एक शक्ति तो दूसरा शिव है। शिव के बिना शक्ति अस्तित्वहीन है। शक्ति के बिना शिव मात्र शव है।
भारतीय ऋषि परंपरा एक दूसरे को सम्मान देने की विधिव्यवस्था है। पूरक बनने की विधिव्यवस्था है। गृहस्वामिनी गृहलक्ष्मी स्त्री को और पुरुष को गृहस्वामी नारायण से अलंकृत किया जाता है। यहां परमेश्वर या परमेश्वरी, गृहलक्ष्मी या स्वामी नारायण से अलंकृत कर एक दूसरे में देवत्व जगाने का एक प्रयास किया जाता है। एक दूसरे को महत्वपूर्ण एक दूसरे के लिए बताने की यह ह्यूमन साइकोलॉजी है। अतः परमात्मा की सृष्टि को व परिवार को देवता बनकर ही सुखमय बनाया जा सकता है। देवता बनकर नहीं।
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युगऋषि कहते हैं कि – स्त्री पुरूष एक ही शक्ति के दो भाग हैं, एक दूसरे के पूरक। समान महत्त्व रखते हैं। प्रत्येक पुरुष में भी स्त्री तत्व होता है, प्रत्येक स्त्री में भी पुरुष तत्व होता है, बस स्त्री में स्त्रीत्व ज्यादा होता है और पुरुष में पुरुष तत्व ज्यादा होता है। सृष्टि के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया। शिव स्वयं पुल्लिंग के तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एकाकार होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं। जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा।
गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। तब अपनी समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुंचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा की समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया। शक्ति के बिना शिव शव है और शिव के बिना शक्ति अस्तित्व हीन है। प्रकृति व पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार: डा. प्रणव पंड्या
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