‘कलियुग में इसलिए बहुतों को प्रिय नहीं श्रीराम’

राम तो त्याग की प्रतिमूर्ति हैं

हर युग, अपने मूल्यों के हिसाब से आदर्शों और नायकों को चुनता और गढ़ता है। जिस युग के जो मूल्य होते हैं, वैसे ही उस युग के प्रचलित आदर्श हो जाते हैं। आज के युग का सबसे बड़ा आदर्श है – भोग, कंज़म्पशन। तो इस युग को फिर ऐसे ही चरित्र, लोग, आदर्श, नायक पसंद आएंगे, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में खूब भोगा हो। आज का जो आम आदमी है, उसकी इच्छा तो ये है कि जितनी दुनिया में चीज़ें हो सकती हैं, उन्हें भोगे, पर राम तो त्याग की प्रतिमूर्ति हैं।

जानिए, कौन हैं श्रीराम

राम वो हैं जो पिता के कहने पर हाथ में आया सिंहासन ठुकराकर वन की ओर प्रस्थान कर गए। आज का कौन-सा इंसान, कौन-सा लड़का, कौन-सा बेटा, ऐसा करने का साहस करता है। आज का हाल तो ये है कि, तुम्हारे हाथ में जो चीज़ें नहीं आ रही हो, जिसके तुम लायक नहीं हो, तुम उसको भी किसी तरीके से, छल-कपट से, हासिल कर लेना चाहते हो।

अति साधारण व्यक्तित्व

राम के चरित्र में कोई बहुत जगमगाहट नहीं है, चकाचौंध कर देने वाला कुछ नहीं है उनके चरित्र में, कोई बहुत बड़े-बड़े चमत्कार नहीं हैं। भाई मरने को पड़ा हुआ है तो भी उसकी जान वो कोई चमत्कार करके नहीं बचा लेते। वो अब आश्रित हैं कि हनुमान जाएं और वैद्य से दवा पूछें और फिर वो दवा ढूंढ़े और फिर वो दवा लेकर आएं। बहुत साधारण हैं राम। आज कौन साधारण रहना चाहता है? आज कौन आंसू बहाना चाहता है? आज कौन किसी गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरना चाहता है? आज तो हम चाहते हैं कि एक चकाचौंध भरी जिंदगी मिले। आज तो हमें वो सब कुछ चाहिए जिसमें उत्तेजना हो, जिसमें ताकत हो और उस ताकत का इस्तेमाल करके हम दुनिया को भोग सकें और, और सुख पा सकें।

कभी व्यक्तिगत सुख की आकांक्षा नहीं रखी

राम वो हैं जिन्होंने जान लगा दी एक ऊंचे उद्देश्य और आदर्श के लिए। जब जीत ली सोने की लंका, तो विभीषण के हवाले कर दी। उन्होंने रावण के ही छोटे भाई को लंका सौंप दी कि लो तुम संभालो, तुम्हारी चीज़, तुम जानो, हमें लंका का कोई मोह कभी था ही नहीं, सोना हमें चाहिए नहीं था, धर्म की बात थी।

केवट के आंसू- शबरी के जूठे बेर

राम वो हैं जो कभी केवट के साथ बैठकर आंसू बहा लेते हैं, कभी शबरी के जूठे बेर खा लेते हैं। वो ये नहीं देखते कि कौन ऊंचे कुल का है, कौन नीचे कुल का है।

जंगल जाकर, वहां के निवासियों की ही सेना बना ली

राम वो नहीं हैं जिनके पास उच्च कोटि के संसाधन हो, जो बहुत ऊंची जिंदगी बिता रहे हों। राम वो हैं जो जंगल में जाकर, जंगल के निवासियों की ही सेना बना लेते हैं। अब वानर और रीछ की नहीं, सेना थी श्रीराम की, वो जंगल के निवासी थे – वो जो वानरों और अन्य जीवों की ही उपासना करते थे।

जानते-बूझते कष्ट आमंत्रित किए

राम वो हैं जो जानते-बूझते अपने ऊपर कष्ट आमंत्रित करते हैं – पीड़ा से, कष्ट से गुजरते हैं और आज का व्यक्ति हर समय सुख मांगता है। उन्हें प्लेज़र चाहिए, ये युग हैप्पीनेस का पुजारी है, और तुम्हें राम के चरित्र में हैप्पीनेस बहुत कम मिलेगी।

ये युग,मूल्यों के संक्रमण का युग है

आज ये तो छोड़ दें कि राम नहीं हैं; त्रासदी ये है इस युग की, विडंबना यह है कि आज रावण भी नहीं है। ये युग ‘ मूल्यों के संक्रमण का युग’ है। जिधर देखो उधर, चरित्र के बौने नजर आते हैं – ड्वार्फस। कोई वजह है कि कबीर साहब जैसा मूर्धन्य ज्ञानी राम! राम! राम! और बस राम का ही नाम लेता रहता है; कोई वजह है कि गुरु ग्रंथ साहिब में राम का नाम सैकड़ों-हजारों बार आया है। उस राम को अगर आज हम मूल्य या सम्मान नहीं दे सकते, तो हम सरासर गलत हैं।

आचार्य प्रशांत