काशी विश्वनाथ में पहली बार जन्माष्टमी पर भक्त कर पाएंगे दुर्लभ दर्शन, मंगला आरती में एक साथ दर्शन देंगे लड्डू गोपाल और बाबा विश्वनाथ

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है और कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर शिव की नगरी काशी भी कान्हा के रंग में रंग गई है। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब काशीपुराधिपति के आंगन विश्‍वनाथ धाम में लड्डू गोपाल का जन्‍मोत्‍सव मनाया जाएगा। काशी विश्‍वनाथ मंदिर प्रशासन ने बाबा धाम में सोमवार को कान्‍हा के जन्‍मोत्‍सव के आयोजन की तैयारी कर ली हैं। बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह में ज्योर्तिलिंग के मंगला आरती में लड्डू गोपाल की झांकी के दर्शन भी किए जाएंगे।

काशी विश्वनाथ धाम का जन्माष्टमी कार्यक्रम
धाम के मंदिर चौक में लड्डू गोपाल के अभिषेक और जन्‍म अनुष्‍ठान समारोह आयोजित किया जाएगा। जन्म उत्‍सव रात्रि में 11 बजे अभिषेक के साथ शुरू होकर मध्‍यरात्रि तक अनवरत चलेगा। 27 अगस्‍त को लड्डू गोपाल बाबा विश्‍वनाथ की मंगला आरती में शामिल होंगे। मंगला आरती में आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा विश्‍वनाथ के साथ ही लड्डू गोपाल के दर्शन का पुण्‍य मिलेगा। श्रद्धालुओं को पहली बार दोनों देव के एक साथ दर्शन करने की सुविधा मिलेगी और लड्डू गोपाल के अभिषेक, चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण किया जाएगा।

कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां पूरी
मंदिर के अधिकारियों ने बताया है कि बाबा विश्वानाथ मंदिर में भक्तों के लिए हर दिन नई सुविधाएं दी जा रही हैं और हर उत्सव का लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। काफी भक्त जो मथुरा नहीं जा पा रहे हैं, वे काशी पहुंचकर बाबा विश्वनाथ के साथ लड्डू गोपाल के दर्शन कर सकेंगे। ऐसे में विश्वनाथ धाम लड्डू गोपाल के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। जन्मोत्सव के समय नाचने गाने और बधाईयां देने का भी भव्य आयोजन किया गया है।

काशी के सभी मंदिरों को सजाया गया
ऐसा पहली बार हो रहा है कि मथुरा वृंदावन की तर्ज पर काशी में कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व धूमधाम और उल्लास के साथ मना सकेंगे। काशी शहर में जन्‍माष्‍टमी के तीन दिवसीय आयोजन की शुरुआत रविवार को शोभायात्रा के साथ हुई। सभी घरों में श्रीकृष्‍ण जन्‍मोत्‍सव के आयोजन होंगे। इस्कॉन मंदिर, गोपाल मंदिर सनातन गौड़ीय मठ, बिंदुमाधव समेत अन्‍य मंदिरों को कान्‍हा के जन्‍मोत्‍सव के लिए आकर्षक ढंग से सजाया गया है।

दो रूप में एक ही प्रभु
विष्णु पुराण में भगवान विष्णु को ही शिव कहा गया है तो शिव पुराण में शिव के हजारों नाम में से एक विष्णु है। दोनों एक दूसरे के अराध्य देव हैं और भगवान शिव कृष्ण लीलाओं से मुग्ध रहते हैं। हनुमान के रूप में दोनों देवों की मैत्री और आस्था का भाव देखने को मिलेगा। भगवान विष्णु अपने स्वरूपों में शिवलिंग की स्थापना और पूजा अर्चना करते हैं। शिव और विष्णु दोनों एक दूसरे के पूरक है, दोनों में कोई अंतर नहीं है। एक ही प्रभु दुनिया में हमेशा दो रूपों में घूम रहे हैं।