कुंभ सिर्फ परंपरा नहीं है

अजहर अंसारी
इलाहाबाद।।
कुंभ सिर्फ आस्था और विश्वास का संगम नहीं है और न ही यह एक परंपरा भर है, बल्कि यह उस श्रद्धा का मेला है जो दिल की गहराइयों से निकलती है। श्रद्धा भाव से मिलने वाले असीम आनंद के चरम का अनुभव सिर्फ संगम तट पर आकर ही किया जा सकता है। यही वजह है कि लोग महाकुंभ, अर्धकुंभ या माघ मेले के लिए दुनिया के कोने-कोने से खिंचे चले आते हैं। जयपुर से आए अरविंद कहते हैं कि यह कौतूहल का मेला तब तक लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहेगा, जब तक गंगा में पानी रहेगा।

संगम की रेती पर यह मेला पूरी रंगत में आ चुका है। समय ने इसे हर लिहाज से और समृद्ध किया है। इस बार इस मेले का वैभव देखते ही बनता है। चाहे संतों का दरबार हो या फिर सरकारी कार्यालय, संगम नगरी कुंभमय हुई पड़ी है। कुंभ ने धर्मों के बंधन भी तोड़ दिए हैं। हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए मुसलमान भी अपने दरवाजे खोलकर बैठे हैं। रात को जमगम रोशनियां और पानी में बनते इनके प्रतिबिंब अनायास ही लोगों को आकर्षित कर देते हैं।

इस बार इस मेले को ग्लोबल महाकुंभ कहा जा सकता है, क्योंकि यहां पर अवधेशानंद, आसाराम बापू, योग गुरु रामदेव और श्री श्री रविशंकर जैसे संत आए हैं, जिनकी ख्याति पूरी दुनिया में है। विदेशों से इनके भक्त भी यहां पहुंचे हुए हैं। यह कुंभ आम लोगों ही नहीं, बल्कि टूरिस्ट्स, मीडिया, व्यापारी और अधिकारी वर्ग का भी मेला है। शिविर भले ही साधुओं से भर गए हों, लेकिन मेले की आत्मा कहा जाने वाला मुख्य स्नान पर्व ‘मौनी अमावस्या का स्नान’ अभी बाकी है। असली भीड़ उसी दिन जुटेगी।

आशंका जताई जा रही है कि आतंकवाद का साया होने की वजह से मेले में कम भीड़ जुटेगी, लेकिन प्रयागवासी राजेंद्र पालीवाल इस बात को सिरे से खारिज करते हैं। उनके मुताबिक महाकुंभ के स्नान पर्व को कोई नहीं रोक सकता।

माना जाता है कि कल्पवास करने या गंगा के दर्शनमात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भले ही युवाओं का इस मान्यता में यकीन न हो, लेकिन बहुत से लोग आज भी इस बात पर भरोसा करते हैं। इसीलिए, गंगा की धाराएं उनमें आत्मविश्वास भरती हैं और उन्हें अच्छाई के रास्ते पर ले जाती हैं।

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