डॉ. प्रणव पण्ड्या
गायत्री मंत्र में ‘सविता’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण अर्थ रखता है। यही इस मंत्र का प्राण है। पूरे गायत्री में सविता ही अधिष्ठान है। शब्द की दृष्टि से भी सविता बहुआयामी अर्थ का द्योतक है। सविता केवल प्रकाशवान ही नहीं है, अपितु सृष्टा, पोषक, रक्षक व दाता है। गायत्री महाविद्या के सिद्ध पुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने कहा है कि यह सविता समस्त प्राणियों के स्वामी हैं, प्रसविता और परित्राता हैं। मनुष्यों का परित्राण करने में परमात्मा की यही एकमात्र स्थूल अभिव्यक्ति माध्यम है जिसका आश्रय लेकर मनुष्य अपना बेड़ा पार लगा सकता है। उन्होंने सविता पर गहन शोध किया और गायत्री के इस सविता को या कहें कि सविता प्राण रूपी गहन गायत्री को सबके लिए सुलभ बना दिया।
वैसे सविता शब्द से साधारणत: सूर्य का अर्थ प्रकट होता है क्योंकि प्रत्यक्षत: वही तेजस्वी और प्रकाशवान है। परमात्मा की वह अप्रत्यक्ष शक्ति, जो तेज के रूप में हमारे स्थूल नेत्रों के सामने आती है वह सूर्य है, इसलिए स्थूल अर्थों में इस सूर्य नामक ग्रह को सविता कहते हैं। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि यह चमकनेवाला अग्रिपिण्ड ही पूर्ण सविता नहीं है। आध्यात्मिक भाषा में सविता कहते हैं तेजस्वी को, प्रकाशवान को, उत्पन्न करनेवाले को। परमात्मा की अनंत शक्तियां हैं, उसके अनेक रूप हैं। उनमें तेजस्वी शक्तियों को सविता कहा जाता है।
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परमात्मा की जिस शक्ति से हमें प्रयोजन होता है, जिसको अपनी ओर आकर्षित करना होता है, उसका ध्यान, स्मरण या जप किया जाता है। पूजा उपादानों के द्वारा उस शक्ति को अपने अभिमुख बनाया जाता है। रेडियो की सुई को जिस नंबर पर घुमा दिया जाता है, उस नंबर के मीटरवालों से उस रेडियो का संबंध स्थापित हो जाता है और उसमें चलनेवाली शब्दलहरी सुनाई पड़ने लगती है। इस विज्ञान को ध्यान में रखते हुए उपासना के लिए ऐसा नियम बनया गया है कि अनंत शक्तियों के भंडार ईश्वर की जिन शक्तियों से लाभ उठाया है, उसका ध्यान करते हैं।
गायत्री में सविता का ध्यान किया जाता है। सविता तेजस्वी है इसलिए साधक उससे तेजस्विता की आशा करता है, आत्मिक तेज, बौद्धिक तेज, आर्थिक तेज, शारीरिक तेज इन सब तेजों से संबंध बनने से मनुष्य का जीवन सर्वांगपूर्ण तेजयुक्त बनता है। ईश्वर की तेजशक्ति को धारण करके हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकाशमान नक्षत्र की तरह चमकें। इसलिए ईश्वर के सविता नाम का गायत्री में स्मरण किया गया है। वेद शास्त्रों में सविता शब्द को विभिन्न अर्थों में परिभाषित किया गया है। कृष्णयजुर्वेद में सविता को समस्त सृष्टि का प्रसव करनेवाला तथा स्वामी बताया गया है-सविता वै प्रसवनामिशे।
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वृहत् योगी याज्ञवल्क्य (अ. 9/55) में सविता को प्राणियों एवं भावों को उत्पन्न करनेवाला तथा प्रेरक और सबका रक्षक बताया गया है। संध्या भाष्य में सविता को दु:खों का नाश करनेवाले हेतुओं की वृष्टि करनेवाला बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में सविता को साक्षात ब्रह्म बताया गया है। भविष्य पुराण में सविता को समस्त भूतों की आत्मा, सनातन, प्राणियों का स्वामी तथा प्रजापति ब्रह्मा के रूप में निरूपित किया गया है।
इस तरह निरुक्त, उपनिषदों और पुराणों में सविता संबंधी वर्णन करीब इसी प्रकार से किया गया है। सविता को प्राणियों का जीवन दाता, प्रेरक, पोषक, रक्षक, स्वामी तथा उद्धारक बताया गया है। इसलिए सविता देवता का नित्य नियमित ध्यान करना चाहिए। सविता वर्ग विशेष या धर्म सम्प्रदायादि के भेद-भावों से परे होने से यह सबके स्वामी हैं। अत: सब कोई सविता का ध्यान कर अपने जीवन को सुखी समुन्नत बना सकता है।