एक दिसंबर 1955 की बात है। रोजा पार्क्स रोज की भांति मॉन्टगोमरी स्टोर से बस पकड़कर अपने घर जा रही थीं। गोरे लोगों से आगे की सीटें पूरी भर गई थीं। अघले स्टॉप पर कुछ और गोरे आ गए तो बस कंडक्टर ने पीछे की सीटों पर बैठे अश्वेत लोगों को उठाना शुरू कर दिया। जब रोजा पार्क्स को सीट छोड़ने के लिए कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया। रोजा की इस बात से बस में उथल-पुथल मच गई। पहली बार किसी ने ऐसी हिम्मत की थी। कंडक्टर ने बस रोककर पुलिस बुला ली। पुलिस ने रोजा को गिरफ्तार कर लिया। रोजा को जेल जाना पड़ा और उन पर जुर्माना भी लगाया गया।
रोजा ने हिम्मत नहीं हारी और इस नियम के विरोध में उन्होंने एक आंदोलन खड़ा कर दिया। धीरे-धीरे लोग उनके साथ एकजुट होते गए। जब आंदोलन उग्र हो गया तो मामला अमेरिका की अदालत में पहुंचा। आखिरकार जीत रोजा की हुई। अदालत ने बसों में गोरे-काले के इस नियम को असंवैधानिक माना और निर्णय उनके पक्ष में दिया। अमेरिका के इतिहास के पन्नों में यह क्रांति मॉन्टगोमरी ‘बस बायकॉट’ के नाम से अंकित हो गई।– संकलन : रमेश जैन