- दिशाओं का ज्ञान कैसे करें- दिशाऐं ही वास्तु विज्ञान का मुख्य आधार हैं। वास्तुशास्त्र में प्रकृति और पंचमहाभूतों का संबंध दिशाओं से जोड़ा गया है। प्रकृति के विपरीत चलने पर नाना प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है, अतः सुख-समृद्धि हेतु भवन स्वामी को कम से कम दिशाओं का सही-सही ज्ञान होना आवश्यक है। मुख्य रूप से चार दिशाओं का ज्ञान हम सभी को है। चार दिशाएं पूर्व – सूर्योदय की दिशा
- पश्चिम – सूर्यास्त की दिशा
- उत्तर – उत्तरी ध्रुव की दिशा
- दक्षिण – दक्षिणी ध्रुव की दिशा
जिस दिशा में सूर्य उदय होता है, वह पूर्व दिशा, जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है, वह पश्चिम दिशा और पूर्व की तरफ मुंह करके खड़े होने पर दाहिनी तरफ दक्षिण दिशा तथा बायीं ओर उत्तर दिशा होती है। वास्तुशास्त्र में इन चार दिशाओं के अतिरिक्त चार उपदिशाऐं भी होती हैं जो परस्पर दो मुख्य दिशाओं के मध्य में होती हैं। ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य ये चार उपदशिाऐं/विदिशाऐं हैं। चार उपदिशाऐं-
- ईशान – पूर्व एवं उत्तर के मध्य की दिशा
- आग्नेय – पूर्व एवं दक्षिण के मध्य की दिशा
- नैऋत्य – पश्चिम एवं दक्षिण के मध्य की दिशा
- वायव्य – पश्चिम एवं उत्तर के मध्य की दिशा
चार मुख्य दिशाओं और चार उपदिशाओं को मिलाकर आठ दिशाओं का वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। वास्तु शास्त्र में भवन, परिसर के मध्य को ब्रह्म स्थान कहा जाता है जिसका भी विशेष महत्व माना गया है। घर, कार्यालय पूर्ण रूप से वास्तु सम्मत हो, इसके लिए ब्रह्म स्थान का भ विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी भवन का निर्माण करते हुए इन दिशाओं का ध्यान नहीं रखा जाता और अपनी आवश्यकता अनुसार भवन में कक्षों का निर्धारण एवं निर्माण बिना वास्तु को ध्यान में रखकर कर लिया जाता है तो उस भवन में
रहने वाले सदस्यों को अनेक कष्टों, दुःखों का सामना करना पड़ता है। दिशाओं के महत्व के बारे में किसी शायर के अलफ़ाज़ हैं –
सोच को बदल दीजिए, सितारे बदल जाऐंगे,
नजर बदल दीजिए, नजारें बदल जाऐंगे,
किश्तियां बदलने की जरूरत नहीं,
दिशाऐं बदल दीजिए किनारे बदल जाऐंगे
वास्तु शास्त्र में पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य इत्यादि दिशाओं का ज्ञान न होने का अर्थ है, अंधेरे में टॉर्च के बगैर वस्तु ढूंढ़ने का प्रयास करना। कहा भी गया है, कि दिशा व्यक्ति की दशा बदल देती है, यह बात वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन, फैक्टरी, दुकान, कॉम्प्लेक्स पर पूर्णतया सत्य साबित होती है।