जब फिराक गोरखपुरी ने ठुकरा द‍िया राज्‍यसभा के सदस्‍य पद का प्रस्‍ताव

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी का प्रफेसर बनने से पहले फिराक गोरखपुरी आईसीएस की परीक्षा पास कर चुके थे। लेकिन महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने आईसीएस की नौकरी छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में जेल चले गए। इसी बीच गांधीजी के ही किसी भाषण से उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस भी छोड़ दी। इसके बावजूद पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी उनके मुरीद बने रहे। फिराक खुद भी अपने आपको नेहरू परिवार का हिस्सा मानते रहे।

फिराक के घर अक्सर पढ़ने-लिखने वालों का मजमा लगता। ऐसे ही एक दिन उनके घर पर कुछ लोग आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की हार की चर्चा कर रहे थे। चर्चा के दौरान एक साहब इंदिरा गांधी पर उबल पड़े और उनके मुंह से इंदिरा गांधी के लिए ‘बेवा’ शब्द निकल गया। फिराक इस बहस से पहले ही उकता चुके थे इस शब्द को सुनकर वो पूरी तरह से उखड़ गए। उन्होंने अपनी छड़ी उठाई और उस शख्स पर पिल पड़े। चीखते हुए फिराक बोले, ‘तूने मेरी बेटी को बेवा कैसे कह दिया?’

उस घटना के बाद एक बार जब फिराक दिल्ली पहुंचे तो उनके पास प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुलाकात का संदेश भेजा। संदेश पाकर फिराक पहुंचे तो इंदिरा गांधी बोलीं, ‘फिराक साहब, हम सबका विचार है कि अब आप राज्यसभा के सदस्य हो ही जाएं।’ यह सुनकर फिराक कुछ देर के लिए चुप हो गए, फिर मुस्कुराए और बोले, ‘इंदिरा जी, आपके नाना के जमाने से आनंद भवन से मेरे ताल्लुकात हैं। ये ताल्लुकात ऐसे ही मजबूत बने रहें, आप मेरा इसी तरह से सम्मान करती रहें, बस इतना ही मेरे लिए लाख-लाख राज्यसभा के बराबर है। मैं जहां हूं, खुश हूं।’ आज जिस तरह से येन-केन प्रकारेण लोग संसद पहुंचना चाहते हैं, फिराक गोरखपुरी उनके लिए नजीर हैं।

संकलन : युगल किशोर