संकलन: मौलश्री गुप्ता
डर क्या चीज होती है, बालक नरेंद्र को यह पता ही नहीं था। डराकर किसी काम से उसे रोकना असंभव था। नरेंद्र के एक पड़ोसी के घर में चंपक फूल का एक पेड़ था। उस पेड़ की डालियों में पैर अड़ाकर सिर और हाथ नीचे करके झूलने में उसे बड़ा मजा आता था। एक दिन नरेंद्र उसी पेड़ की टहनी से उलटा होकर झूल रहा था, तभी बुजुर्ग पड़ोसी ने उसे देख लिया। नरेंद्र को उलटा देखकर वे घबराए, क्योंकि उसके उत्पाती स्वभाव की वजह से टहनी टूट सकती थी। वे जानते थे कि अगर उसे धमकाया तो नतीजा उलटा होगा।
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बुजुर्ग नरेंद्र के पास गए और बड़ी ही मीठी बोली में बोले, ‘बेटा, उस पेड़ पर मत चढ़।’ नरेंद्र ने पूछा, ‘क्यों? इस पेड़ पर चढ़ने से क्या होगा?’ ‘उस पेड़ पर ब्रह्मराक्षस रहता है।’ यह कहते हुए बुजुर्ग ने उस ब्रह्मदैत्य के बारे में नरेंद्र को पूरा बताया और उदाहरण देकर समझाया कि ब्रह्मराक्षण अपने वृक्ष का अपमान नहीं सहेंगे, तुम्हारी गर्दन मरोड़ देंगे। यह सुनकर नरेंद्र चुप हो गया। उसे चुप देखकर बुजुर्ग समझे कि नरेंद्र मान गया।
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बुजुर्ग के जाते ही बालक नरेंद्र फिर से पेड़ की टहनी पर चढ़ गया और बोला, ‘ब्रह्मराक्षस महोदय, आप कहां हैं? जरा सामने तो आइए! एक बार आपका चेहरा तो देखूं!’ नरेंद्र का यह खेल देखकर उसका साथ भयभीत हो उठा। डर से कांपते हुए वह बोला, ‘नहीं भाई, ऐसा मत करो। जाने कब ब्रह्मराक्षस गर्दन मरोड़ दे।’ हंसते हुए नरेंद्र बोला, ‘तू बिल्कुल मूर्ख है! अगर ब्रह्मराक्षस जैसी कोई चीज होती, तो अब तक मैं यहां न होता।’ अंधविश्वासों के प्रति बचपन से ही जागरुक रहा यह बालक नरेंद्र आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना गया, जिसने लोगों को तरह-तरह के ढकोसलों को पहचानना और उनसे बचना सिखाया।