उनके बीच का एक गोरा खिलाड़ी तो इस कदर बेकाबू हो गया कि स्कूल के एक खिलाड़ी को बूट से मारते हुए अंग्रेजी में गालियां देने लगा। दर्शकों में एक युवक ऐसा था जो अंग्रेजी का जानकार था। तब वह चुनार में अंग्रेजी के ट्यूशन के लिए मशहूर था। उसने गोरे को गाली देते हुए सुना तो सहन नहीं कर सका। वहीं मैदान से बांस का एक मोटा डंडा उखाड़ा और गाली दे रहे गोरे के ऊपर दनादन बरसाने लगा। उसे देखकर मैदान में और भी लोग आ गए। गोरों की बड़ी फजीहत हुई।
गोरे की धुलाई करने वाला यह दुबला पतला युवक उसी स्कूल में अध्यापक था। बीस रुपए महीने की नौकरी उसे मुश्किल से मिली थी, और इसकी उसे जरूरत भी थी। लेकिन घटना के बाद उसे चुनार छोड़ना पड़ा। इसके बाद उसने बनारस का रुख किया और आगे चलकर अन्याय के विरोध में डंडे की जगह कलम उठा ली। उसकी कलम भी इतनी ताकतवर निकली कि गोरे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। शुरू में उसने जो लिखा, सब जब्त कर लिया गया। लेकिन युवक न रुका, न अपने तेवर बदले। हां, अपना नाम और भाषा जरूर बदल ली। बदली हुई भाषा थी हिंदी, और बदला हुआ नाम था- मुंशी प्रेमचंद।
संकलन : हरिप्रसाद राय