जब मुंशी प्रेम चंद ने कर दी गोरो की पिटाई, जानें उनके जीवन की रोचक कहानी

1899 की बात है। मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के चुनार में फुटबॉल का एक मैच चल रहा था। एक ओर सैनिक छावनी के गोरे सिपाही थे तो दूसरी ओर वहीं के मिडिल स्कूल के कर्मचारी। मैच में स्कूल की टीम जब भी बढ़त बनाती, दर्शक जोश से भर उठते। गोल लगता तो उनकी जोर की आवाज आती- हिप-हिप हुर्रे! हर नारे में चुनार के लोगों का प्रतिरोध दिखता, जो गोरों के खिलाफ था। स्कूल की टीम ने एक-एक कर कई गोल किए और जीत गई। यह जीत गोरे खिलाड़ियों को रास नहीं आई। वे हिप-हिप हुर्रे से चिढ़ गए।

उनके बीच का एक गोरा खिलाड़ी तो इस कदर बेकाबू हो गया कि स्कूल के एक खिलाड़ी को बूट से मारते हुए अंग्रेजी में गालियां देने लगा। दर्शकों में एक युवक ऐसा था जो अंग्रेजी का जानकार था। तब वह चुनार में अंग्रेजी के ट्यूशन के लिए मशहूर था। उसने गोरे को गाली देते हुए सुना तो सहन नहीं कर सका। वहीं मैदान से बांस का एक मोटा डंडा उखाड़ा और गाली दे रहे गोरे के ऊपर दनादन बरसाने लगा। उसे देखकर मैदान में और भी लोग आ गए। गोरों की बड़ी फजीहत हुई।

गोरे की धुलाई करने वाला यह दुबला पतला युवक उसी स्कूल में अध्यापक था। बीस रुपए महीने की नौकरी उसे मुश्किल से मिली थी, और इसकी उसे जरूरत भी थी। लेकिन घटना के बाद उसे चुनार छोड़ना पड़ा। इसके बाद उसने बनारस का रुख किया और आगे चलकर अन्याय के विरोध में डंडे की जगह कलम उठा ली। उसकी कलम भी इतनी ताकतवर निकली कि गोरे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। शुरू में उसने जो लिखा, सब जब्त कर लिया गया। लेकिन युवक न रुका, न अपने तेवर बदले। हां, अपना नाम और भाषा जरूर बदल ली। बदली हुई भाषा थी हिंदी, और बदला हुआ नाम था- मुंशी प्रेमचंद।

संकलन : हरिप्रसाद राय