संकलन: रेनू सैनी
एक बार महात्मा गांधी को सूत कातते देखकर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मुस्कराते हुए कहा, ‘सूत कातना तो बेहद कठिन और उबाऊ काम लगता है। आप इसे इतनी सरलता से कैसे कर लेते हैं?’ पटेल की बात पर गांधीजी बोले थे, ‘कोई भी काम तब अच्छा लगने लगता है, जब व्यक्ति उसे एकाग्रता से चिंतनपूर्वक करता है। सूत कातने से मन को शांति मिलती है। बेचैन मन तृप्त हो जाता है और यह देखकर प्रसन्नता होती है कि हमने एक सार्थक काम किया है।’
गांधीजी की बात सुनकर पटेल जी उत्सुकतावश सूत कातने बैठे। गांधीजी ने उन्हें सूत कातना सिखाया। थोड़ी देर बात पटेल उकता कर बोले, ‘मुझे तो यह काम बोरियत भरा लग रहा है। मुझे नहीं लगता कि मैं कभी सूत कातने में महारत हासिल कर पाऊंगा। यह काम तो आप ही कर सकते हैं।’ गांधीजी बोले, ‘ऐसा नहीं है। तुम भी अवश्य कर पाओगे। कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। बस थोड़ा समय काम को दो और उसे मन लगाकर करो। काम कब हो जाएगा, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।’
सरदार पटेल जब जेल में थे, तब उन्हें गांधीजी की ये बातें अक्सर याद आ जातीं और उनमें सूत कातने की भावना तीव्र हो जाती। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ अपना अधिकांश समय सूत कातने में बिताना शुरू कर दिया। प्रारंभ में उन्हें सूत कातना कुछ अजीब सा लगा, लेकिन समय बिताने के लिए इससे अच्छा उपाय भी नहीं था। कुछ समय बाद जब वह कारावास से मुक्त हुए तो उन्होंने नौ रतल सूत कातकर जमा कर दिया था। गांधीजी को जब यह पता चला कि पटेल ने जेल में रहते हुए नौ रतल सूत कात दिया तो उन्होंने वल्लभभाई पटेल से कहा, ‘मैंने कहा था ना कि एक दिन तुम अवश्य सूत की कताई कर पाओगे। तुमने वह कर दिखाया।’ गांधीजी की बात सुनकर पटेल मुस्करा दिए।