जयपुर नरेश इसलिए छोड़ दिया शिकार करना, दिखा चमत्कार

संकलन: दीनदयाल मुरारका
जयपुर नरेश के दीवान अमर चंद जैन की गिनती अत्यंत कुशल प्रशासकों में होती थी। वे अहिंसा के घोर समर्थक और मानवता के पुजारी थे। उन्हें राजपरिवार का विशेष स्नेह प्राप्त था। जिस कारण दूसरे दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। वे समय-समय पर उनके खिलाफ महाराज के कान भरते रहते थे। एक बार महाराज शिकार खेलने के लिए जाने लगे, तो उन्होंने दीवान जी को भी साथ ले लिया। दोनों जंगल में बड़ी दूर निकल गए। जब महाराज ने हिरणों का झुंड देखा तो अपना घोड़ा उनके पीछे दौड़ा दिया।

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आगे-आगे भयभीत हिरण थे और उनके पीछे महाराज का घोड़ा, और उनके पीछे दीवान अमरचंद का घोड़ा दौड़ रहा था। दीवान जी सोच रहे थे कि इन निरीह एवं मूक पशुओं ने महाराज का क्या बिगाड़ा है? मनुष्य कैसा अविवेकी है? वह निर्बल पशुओं को मारकर अपनी वीरता पर घमंड करता है। ये बेचारे भाग कर कहां जाएंगे? जब राजा ही इनके प्राण लेने को उतारू है, तो ये अपनी जान कैसे बचाएंगे? तभी दीवान जी को एक युक्ति सूझी। उन्होंने जोर से पुकारा, ‘हिरणो, मैं कहता हूं कि जहां हो, वहीं रुक जाओ। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो बच कर कहां जाओगे!’

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असल में दीवान जी ने यह बात महाराज की आंख खोलने के लिए कही थी, पर संयोगवश हिरण अपने-आप रुक गए। इस पर दीवान जी ने कहा, ‘महाराज यह खड़े हैं आपके शिकार, जितने चाहिए ले लो!’ महाराज कभी दीवान जी को देखते और कभी हिरणों को। वह जो कुछ देख रहे थे, वैसा जीवन में कभी नहीं देखा था। अद्भुत और अपूर्व दृश्य था। महाराज के हृदय में एक हिलोर सी उठी। वे बोले, ‘दीवान जी, आपने मेरी आंखें खोल दी। मैं आज से शिकार का त्याग करता हूं। मैं अब हर तरह की हिंसा पर रोक लगाने की कोशिश करूंगा।’