भविष्य पुराण में उल्लेख मिलता है कि वसंत माघ की शुद्ध त्रयोदशी में उल्लास के देव ‘काम’ और सौन्दर्य की देवी ‘रति’ की मूर्ति बनाकर सामूहिक रूप से पूजन किया जाता है। राजा भोज के ‘सरस्वती कण्ठाभरण’ नामक ग्रंथ में इस उत्सव का बड़े ही सुंदर ढंग से चित्रण किया गया है। ‘हरि विलास’ में स्पष्ट ही उल्लेख मिलता है कि वसंत का उद्भव माघ शुक्ल वसंत पंचमी के दिन हुआ। कालिदास के ‘ऋतु संहार’ नामक ग्रंथ में प्रकृति और मानव सौन्दर्य के अनेक पहलुओं का वर्णन किया गया है। ‘रत्नावली’ ग्रंथ में इसका ‘वसंतोत्सव’ एवं ‘मदनोत्सव’ दोनों ही नामों से उल्लेख मिलता है।
कवियों और विद्वानजनों ने वसंत प्रकृति और मनुष्यों के संवेदनशील संबंधों का साकार रूप में वर्णन किया है। संस्कृति और हिंदी साहित्य की प्रायः प्रत्येक विधा में वसंत पर्व का वर्णन किसी न किसी रूप में किया गया है। कालिदास, माघ, भारवि आदि संस्कृत कवियों से लेकर वर्तमान संस्कृत-हिंदी कवियों ने भी वसंत का वर्णन किया है। वसंत को ऋतुराज, कामसखा, पिकानन्द, पुष्पमास, पुष्प समय, मधुमाधव आदि नामों से संबोधित किया गया है।
वसंत के बार-बार आने का यही रहस्य है कि हम उससे सदा मुस्कराते रहनी की प्रेरणा ग्रहण कर सकें। इस युग के महान ऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी भी अपने उद्धोजनों में यदा-कदा मनुष्यों को मुस्कराते रहने की बात बताया करते थे। वह जानते थे कि मुस्कान में मानव के स्वास्थ्य का एक अनोखा रहस्य छिपा हुआ है। यदि सर्वदा हम मुस्कुराते रहने का अभ्यास कर लें, अपने व्यक्तित्व को सदा मुस्कुराहट से भर लें, तो हमारा केवल स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि बहुत सी बीमारियों से छुटकारा मिल जाएगा। इसलिए हमें ऐसी जीवन-पद्धति अपनानी चाहिए जिससे हमारी आंतिरक प्रकृति भी बाह्य प्रकृति के अनुरूप परिवर्तित होती रहे और हम अपने जीवन में सृजनशीलता के महानतम गुणों को अंगीकार कर स्वयं तथा अपनी संस्कृति को भी और अधिक समृद्ध बना सकें।देवी सरस्वती के इन 8 मंदिरों में दर्शन से मिलता है ज्ञान, सुख और मोक्षडॉ. प्रणव पण्ड्या(लेखक देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख हैं।)