प्रकृष्टं सर्वयोगभ्यः प्रयागमिति गीयते।
दृष्ट्वा प्रकृष्टयागेभ्यः पुष्टेभ्यो दक्षिणादिभिः।
प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहरादिभिः।।
भारत देश, विश्व की आत्मा कहलाता है और तीर्थराज प्रयागराज भारत का प्राण कहा गया है। अरण्य और नदी संस्कृति के बीच जन्म लेकर ऋषियों, महर्षियों की तपोभूमि के रूप में पंचतत्वों को पल्लवित करने वाली प्रयागराज की धरती पर सदियों से महाकुम्भ, अर्द्धकुम्भ, माघ मेले आदि में लाखों, करोड़ों भक्तों की आस्था, देश को हमेशा उर्जा देती रही है। यहां प्रत्येक बारह वर्ष उपरान्त महाकुम्भ, छः वर्ष उपरान्त अर्द्धकुम्भ और प्रत्येक वर्ष माघ मेले का आयोजन होता है जिसमें असंख्य श्रद्धालु बिना निमंत्रण के त्रिवेणी स्नान करने आते हैं। प्रयागराज की श्रेष्ठता के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और चन्द्रमा श्रेष्ठ होता है, उसी तरह तीर्थों में प्रयागराज सर्वोत्तम तीर्थ है।
ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
तीर्थानामुत्तमं तीर्थ प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।।
स्कन्द पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्मपुराण, वामन पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, रघुवंश महाकाव्य आदि में भी प्रयागराज की महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है। प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर केवल गंगा, यमुना तथा अदृश्य सरस्वती का संगम ही नहीं अपितु अनेकानेक सम्प्रदायों, संस्कृतियों एवं ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का भी अद्भुत संगम विद्यमान है। शास्त्रों के अनुसार जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम हो वह ब्रह्मलोक और विष्णुलोक के बराबर का स्थान हो जाता है।
महर्षि वेदव्यास के अनुसार तीर्थराज प्रयाग में यज्ञ करना या यज्ञ आदि क्रियाओं में सम्मिलित होने से मनुष्य के सारे पाप, पुण्य में परिवर्तित हो जाते हैं, ऐसी तीर्थराज प्रयाग की अद्भुत महिमा है। तीर्थराज प्रयाग एक ऐसा पावन स्थल है, जिसकी महिमा अधिकांश धर्म ग्रंथों में वर्णित है। तीर्थराज प्रयाग को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता कहा गया है। ब्रह्मपुराण के मतानुसार यह स्थल सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है। प्रकृष्टत्वात्प्रयागोऽसौ प्राधान्यात् राजशब्दवान्।
अपनी उत्कृष्टता के कारण यह ‘प्रयाग’ है और प्रधानता के कारण ‘राज’ शब्द से युक्त है। माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में आए तो एक माह तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर रहकर कल्पवास शरीर और मन दोनों का कायाकल्प होता है। किसी भी प्रकार के पाप की मुक्ति के लिए जो यहां दान-पुण्य सहित सच्चे मन से आराधना करता है और कम से कम तीन रात्रि निवास करता है उसे पापों से मुक्ति मिलती है।
संगम का क्षेत्र, अक्षय क्षेत्र कहलाता है, यहां किया हुआ धर्म-कर्म हमेशा अक्षय रहता है उसका क्षय नहीं होता है, यही कारण है कि सदियों से पुण्य स्नान, दान की परम्परा अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। जनवरी 2025 में प्रयागराज में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुम्भ के रूप में आयोजित होगा जिसमें देश-विदेश से करोड़ों भक्तों का आगमन, गंगा, यमुना, अदृश्य सरस्वती का संगम स्नान एवं कल्पवास होगा। नदियों के साथ-साथ यहां ज्ञान की त्रिवेणी अनवरत प्रवाहित होती है। महाकुम्भ के दौरान प्रयाग की धरती पर ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म की चर्चा भारतीय संस्कृति को पल्लवित करेगी। प्रयाग महात्म्य के अनुसार अनादिकाल से प्रयागराज ज्ञान और भक्ति का सर्वश्रेष्ठ स्थान रहा है ।