घर के नजदीक आ जाने पर भी उस व्यक्ति की गालियां खत्म नहीं हुईं, तो लाईकरगस ने बड़ी शालीनता से कहा, ‘भाई, मेरे घर तक आ ही गए हो तो एक-दो दिन अतिथि बनकर यहीं रह जाओ।’ लाईकरगस की यह बात सुनकर वह व्यक्ति मन ही मन बहुत खुश हुआ कि चलो, अब इसके घर में रहकर इसकी निंदा करने का खूब मौका मिलेगा। वह व्यक्ति लाईकरगस के घर पर तीन दिनों तक रहा और उनकी निंदा और बुराई करता रहा। लाईकरगस चुपचाप उसकी सेवा में लगे रहे।
आखिरी दिन जब वह वहां से विदा लेने लगा तो लाईकरगस के सामने चुपचाप खड़ा हो गया। उस व्यक्ति का भाव बदल गया था। वह पश्चात्ताप कर रहा था। उसने लाईकरगस से निवेदन किया, ‘कृपा करके मुझे आप हमेशा के लिए अपने पास रख लीजिए, क्योंकि आपके साथ रहकर निंदा करने का मेरा स्वभाव खत्म हो जाएगा।’ लाईकरगस ने कहा, ‘भाई, बड़ी खुशी से रहो, लेकिन एक शर्त होगी।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘बताइए, आप जो कहेंगे, मुझे मान्य होगा।’ लाईकरगस ने कहा, ‘जब तक तुम्हारी इच्छा हो, मेरे घर में रहो। लेकिन जब कभी तुम्हें मेरी कोई छोटी सी भी भूल दिखाई दे या मेरे सेवा कार्य में तनिक भी ढिलाई देखो, तो मुझे तुरंत बता देना। उस समय तुम्हारा मुझे टोकना मेरे लिए हितकर होगा।’ – संकलन : निर्मल जैन