12 साल में महाकुंभ और 6 साल के अंतर्गत कुंभ (अर्द्धकुम्भ) लगता है जिसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु उपस्थित होते हैं, इसलिए यहां की भूधरा पर देश-विदेश से आने वाले लोग एवं उनकी संस्कृति की छाप दिखाई पड़ती है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम त्रिवेणी कहलाता है। संगम में जो सरस्वती अदृश्य है, वह यहां ज्ञानियों के मुखारविंद से प्रस्फुटित होती देखी जाती है। वर्षों से देश-दुनिया, विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के आवागमन से यहां पर ज्ञान की सरस्वती हर रूप में विद्यमान है। धर्म, अध्यात्म की नगरी प्रयागराज में धर्म के साथ ज्योतिष, कर्मकाण्ड के अनेक विद्वान मिलेंगे।
माघ मास में संगम तट की हवाऐं अध्यात्मिक वातावरण में परिवर्तित हो जाती हैं, जहां प्रत्येक पण्डाल मे धर्म, अध्यात्म, ज्योतिष, भागवत, कथाऐं आदि का श्रवण, मनन मास पर्यन्त चलता है। यहां श्रद्धालु एक माह संगम तट पर रहकर अपनी काया का कल्प करते हैं। अनादि काल में ऋषियों ने ज्ञान को बढ़ाने के लिए कुंभ की परंपरा विकसित की थी ताकि करोड़ों अध्यात्मिक लोगों का ज्ञान एक जगह एकत्र हो सके। आकलन के अनुसार 2025 महाकुंभ में धार्मिक विचार रखने वाले 40 करोड़ से ज्यादा लोग प्रयागराज में उपस्थित होने वाले हैं। पितृ पक्ष में भी संगम तीरे श्राद्ध कर्म एवं पितरों के कल्याण, मोक्ष के लिए दान-पुण्य करने पर उसका फल अक्षय हो जाता है क्योंकि संगम के क्षेत्र को अक्षय क्षेत्र कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय, ग्रह नक्षत्रम् प्रयागराज