काशी के विश्वनाथ मंदिर के बराबर घंटेश्वर महादेव मंदिर
चांदनी चौक स्थित कटरा नील में मंदिर ही मंदिर हैं। यहां कई शिवालय भी हैं, जिसमें सबसे विख्यात और ऐतिहासिक घंटेश्वर महादेव मंदिर है। मंदिर के पुजारी विद्याकांत मिश्रा ने बताया कि सावन के सोमवार में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है। इस दिन शिवलिंग का सुंदर श्रृंगार होता है। मंदिर में छोटे-बड़े सैकड़ों घंटे हैं, तभी मंदिर का नाम घंटेश्वर महादेव पड़ा। अब तो क्षेत्र का अधिकतर हिस्सा कमर्शल हो गया। मगर, जो लोग यहां रहते थे, वो जरूर घंटेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं। ये मंदिर देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। सौभरि संहिता एवं पद्मपुराण के मुताबिक, घंटेश्वर महादेव का पौराणिक नाम विश्वेश्वर महादेव है। किसी समय कटरा नील विद्यापुरी नाम से लोक प्रसिद्ध था। काशी भी विद्यापुरी कहलाती थी। तत्कालीन आर्यावर्त में दो विद्यापुरियों का अस्तित्व स्वीकार किया गया। चांदनी चौक आरडब्ल्यूए के प्रेजिडेंट पराग जैन ने बताया कि काशी के विश्वनाथ मंदिर के समान घंटेश्वर महादेव मंदिर पुण्य और मोक्ष प्रदान करने वाला है। बहुत से घरों में शिवालय हैं। कटरा नील में सबसे अधिक कुएं भी हैं। सावन में मंदिरों की रौनक देखते ही बनती है।
पांडवों ने भी की वनखंडी महादेव की पूजा
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के ठीक सामने वनखंडी महादेव मंदिर भी प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। मंदिर के पुजारी लवपुरी ने बताया कि सावन के सोमवार पर वनखंडी महादेव के दर्शन और पूजन के लिए दूर-दूर से भक्तजन आते हैं। यहां देशभर के साधु, संत और महात्माओं का आना जाना रहता है। एक जमाने में यहां घनघोर जंगल था। तब दिल्ली शहर और रेलवे स्टेशन भी नहीं था। वन होने की वजह से मंदिर का नाम वनखंडी पड़ा। मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने भी यहां के स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की थी। समय-समय पर मंदिर में भजन-संकीर्तन होते हैं। यहां खाटूश्याम की भी स्थापना की गई है। लवपुरी ने बताया कि 2 अगस्त को शिवरात्रि हैं। गंगा जी से कांवड़ लाने वाले इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। सच्चे भाव से भक्त महादेव की पूजा अर्चना करते हैं, तो उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भोलेनाथ को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। वनखंडी महादेव मंदिर पर भी कांवड़ियों के आने, नहाने, जल चढ़ाने, खाने-पीने और ठहरने के उपयुक्त प्रबंध किए जा रहे हैं। वॉल्ड सिटी ही नहीं दिल्ली-एनसीआर से भी शिवभक्त मंदिर आते हैं। यहां के धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
द्वापरयुग के 4 मंदिरों में से एक नीली छतरी मंदिर
दिल्ली में यमुना किनारे लोहे के पुल से सटे नीली छतरी शिव मंदिर की बड़ी मान्यता है। यहां राजनीति की बड़ी हस्तियां रुद्राभिषेक करने पहुंचती हैं। मंदिर के संयोजक मुकेश शर्मा ने बताया कि दिल्ली में एक मात्र नीली छतरी शिवालय है, जिस पर अभिषेक किया दूध और जल सीधा मां यमुना में जाता है। यही ऐसा शिवालय है, जहां सबसे अधिक रुद्राभिषेक होते हैं। महाराजा युधिष्ठिर ने मंदिर क्षेत्र का जीर्णोद्धार कराया था। पिछले साल यमुना में ऐतिहासिक बाढ़ आई, जिसमें मंदिर डूब गया। फिर भी बाहर सीढ़ियों पर खड़े होकर पूजा की। जब पानी कमर तक उतरा, तब अंदाजे से शिवलिंग पर अभिषेक किए गए। घी के कनस्तर छोड़कर सब कुछ बह गया। मंदिर से गाद निकाली गई। सारे इलेक्ट्रॉनिक आइटम खराब हो गए। फिर से बिजली के सभी उपकरण और रंग-रोगन हुआ। मंदिर के महंत मनीष शर्मा ने बताया कि ये दिल्ली के द्वापरयुग के 4 मंदिर कालकाजी, योगमाया, किलकारी भैरों-दूधिया भैरों में से एक है। मंदिर के गुंबद में नीलम लगे थे, उस समय रात में जब चंद्रमा की किरणें पढ़ती थी, तब आकाश नीला हो जाता था। इसीलिए इसे नीली छतरी मंदिर कहते हैं। इसी मंदिर में अश्वमेध यज्ञ को पूरा करके युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट यानी पूरे भारतवर्ष के राजा हुए।