एक रोज वे जब पाठ करने बैठे तो उन्हें अक्षर दिखायी ही नहीं दे रहे थे।थोड़ी देर बाद तो वे बिल्कुल भी नहीं पढ़ सके। अब तो वे रोने लगे और कहने लगे – “हे प्रभु ! मैं इतने दिनों से पाठ कर रहा हूँ फिर आपने आज ऐसा क्यों किया अब मैं कैसे राधारानी जी को पाठ सुनाउँगा?
रोते-रोते उन्हें सारा दिन बीत गया।कुछ खाया पिया भी नहीं क्योंकि पाठ करने का नियम था और जब तक नियम पूरा नहीं करते, खाते पीते भी नहीं थे।
आज नियम नहीं हुआ तो खाया पीया भी नहीं।तभी एक छोटा सा बालक आया और बोला “बाबा! आप क्यों रो रहे हो? क्या आपकी आँखे नहीं हैं इसलिए रो रहे हो ?”
बाबा बोले-“नहीं लाला! आँखों के लिए क्यों रोऊँगा मेरा नियम पूरा नहीं हुआ इसलिए रो रहा हूँ।”
बालक बोला “बाबा! मैंआपकी आँखें ठीक कर सकता हूँ, आप ये पट्टी अपनी आँखों पर बाँध लीजिए।”
बाबा ने सोचा लगता है वृंदावन के किसी वैध का लाला है कोई इलाज जानता होगा! बाबा ने आँखों पर पट्टी बाँध ली और सो गए।जब सुबह उठे और पट्टी हटाई तो सब कुछ साफ दिखायी दे रहा था।
बाबा बड़े प्रसन्न हुए और सोचने लगे देँखूँ तो उस बालक ने पट्टी में क्या औषधि रखी थी और जैसे ही बाबा ने पट्टी को खोला तो पट्टी में राधा रानी जी का नाम लिखा था।
इतना देखते ही बाबा फूट फूट कर रोने लगे और कहने लगे “वाह! किशोरी जी आपके नाम की कैसी अनंत महिमा है!! मुझ पर इतनी कृपा की या खुद श्रीमद्भागवत से इतना प्रेम करती हो कि रोज़ मुझ से श्लोक सुनने मे तुमको भी आनंद आता है।”
॥श्री राधारमणाय समर्पणं॥