बचपन में आत्महत्या करने जा रहे थे ये महान राष्ट्रनायक, बौद्ध मठ ने ऐसी शिक्षा

संकलन: रेनू सैनी
एक बालक परीक्षा में फेल हो गया। साथियों ने उसका मजाक उड़ाया। बालक यह बर्दाश्त नहीं कर पाया। सीधे घर आकर उदास बैठ गया। न उसने कुछ खाया और न ही कुछ पिया। माता-पिता ने बहुत समझाया कि एक परीक्षा में फेल होना इतनी बड़ी असफलता नहीं है जिससे इतना परेशान हुआ जाए। किंतु बालक को माता-पिता की बातों से संतुष्टि नहीं मिली। मानसिक अशांति और निराशा में डूबा वह बालक देर रात उठकर आत्महत्या करने निकल गया।

रास्ते में एक बौद्ध मठ पड़ा जहां से कुछ आवाजें आ रही थीं। बालक उत्सुकतावश बौद्ध मठ के अंदर चला गया। वहां उसने देखा कि एक भिक्षुक कह रहा था, ‘पानी मैला क्यों नहीं होता? क्योंकि वह बहता है। पानी के मार्ग में बाधाएं क्यों नहीं आतीं? क्योंकि वह बहता रहता है। पानी का एक बिंदु झरने से नदी, नदी से महानदी और महानदी से समुद्र क्यों बन जाता है? क्योंकि वह बहता है। इसलिए मेरे जीवन! तुम रुको मत, बहते रहो। जीवन में कुछ असफलताएं आती हैं, किंतु तुम उनसे घबराओ मत। उन्हें लांघकर दोगुनी मेहनत करते चलो। बहना और चलना ही जीवन है। असफलताओं से घबरा कर रुक गए तो उसी तरह सड़ जाओगे जिस तरह रुका हुआ पानी सड़ जाता है। लगातार चलते रहोगे तो आने वाले समय में पीछे की असफलताएं सफलताओं में बदल जाएंगी।’

बालक यह सुनकर सोच में पड़ गया। उसके मन में सवाल उठा कि वह क्या करने जा रहा है। एक असफलता से घबरा कर जीवन खत्म करना तो रुकने से भी ज्यादा खराब है। उसने मन में ठान लिया कि अब तो जीवन में कितनी भी बड़ी असफलता आए, वह रुकेगा नहीं। बहते जल की भांति ही बढ़ता रहेगा। वह वापस घर की ओर मुड़ गया। यही बालक बड़ा होकर वियतनाम के महान राष्ट्रनायक हो ची मिन्ह के रूप में मशहूर हुआ।