बाकी है अपनों का इंतजार…

केदारनाथ यात्रा का नाम सुनकर ही कुछ लोगों की रूह कांप जाती है। पिछले साल की उत्तराखंड त्रासदी इन्हें आज भी परेशान करती है। इस त्रासदी के दौरान देश भर के कई लोगों की जान चली गई। कुछ ने हमेशा के लिए अपनों को खो दिया तो कुछ मौत के मुंह से वापस लौट सके। अपनों को खोने के बाद सिर्फ उनकी तस्वीरों का ही सहारा रह गया है। इन परिवारों में अपने लोगों को खोने का दर्द आज भी दिल में बसा हुआ है। इनका कहना है कि वे दिल्ली सरकार के रवैये से खुश नहीं हैं। परिवार का आरोप है कि सरकार की तरफ से कोई भी सद्भावना तक जाहिर करने नहीं आया। ऐसे ही कुछ परिवारों की कहानी राहुल मानव आप तक पहुंचा रहे हैं।
दरवाजे पर हर आहट से उम्मीद
47 साल के रामज्ञानी दिल्ली से 9 जून को केदारनाथ की यात्रा के लिए लेकर निकले थे। उन्हें 20 जून को वापस आना था। उनके भतीजे दीपक भी बस में बतौर हेल्पर साथ गए थे। ड्राइवर रामज्ञानी ने अपने बेटे दिलीप को 16 जून को फोन करके सूचना दी थी कि वे सोनप्रयाग के नजदीक सीतापुर के एक पुल के पास फंस गए हैं। दिलीप ने बताया कि पिता के मुताबिक 16 जून को सीतापुर के पास पुल टूट चुका था। इतने में लाइन कट हो गई। इसके बाद उनसे संपर्क नहीं हो पाया। निरमा को आज भी उम्मीद है कि उनके पिता दरवाजा खटखटाएंगे और घर लौट जाएंगे।

108 लोगों में से अकेले लौटे
बाकी है अपनों का इंतजार...बाकी है अपनों का इंतजार... पीतमपुरा के विट्ठल माहेश्वरी पिछले साल 9 जून को केदारनाथ के लिए रवाना हुए थे। उनकी पत्नी कांता और रिश्तेदार प्रेमलता और देव भी साथ थे। हरिद्वार से गंगोत्री, यमनोत्री पहुंचने के बाद वह 15 जून को गौरीकुंड पहुंचे। उसी रात केदारनाथ में पहुंच चुके थे। दर्शन करने के बाद वह रामबाड़ा की तरफ आ रहे थे। वह 108 लोगों के ग्रुप में थे। तभी सुबह 9 बजे आसमान में अंधेरा छा गया। तेज बारिश होने लगी। विट्ठल बताते हैं कि लगातार बिजली कड़क रही थी। थोड़ी देर में बादल फट गया और बाढ़ आ गई। तेज तूफान में एक पेड़ उनके आगे आ गया। इसकी वजह से वह एक तरफ हो गए, लेकिन उनकी आंखों के सामने उनकी पत्नी और बाकी लोग पानी में बह गए। विट्ठल बताते हैं कि जब लोग बह रहे थे, सभी ने एक-दूसरे का हाथ थामा था। 69 साल के विट्ठल की 5 साल पहले ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी। वह लगातार दो दिन तक छाती तक जमीन में धंसे रहे। एक कपड़े की मदद से उन्होंने खुद को बाहर निकाला। वह किसी तरह जंगलचट्टी पर एक कैंप में पहुंचे। रास्ते में उन्होंने कुछ छोटे बच्चों को बचाया भी। बकौल विट्ठल, जब लगातार दो दिन फंसे रहने के बाद रास्ता तलाश कर रहे थे, तभी रास्ते में कई लोग ऐेसे मिले जो फंसे हुए थे। न ही खाना, न ही पानी उन सभी के पास मौजूद था। ऊपर आसमान में हेलिकॉप्टर घूम रहा था। नीचे लोग फंसे हुए थे।