भगवान के नाम का चमत्‍कार भीलनी ने कर ली नदी पार

पुराने समय की बात है। राजस्थान के देवपुरा गांव के बाहर बाबा मणि दिव्य की कुटिया थी। बाबा अपने सरल स्वभाव के कारण अत्यंत लोकप्रिय थे। उस गांव में दूसरे गांव से एक भीलनी रोज दूध बेचने के लिए आती थी। सबसे पहले वह बाबा मणि दिव्य को दूध पहुंचाती, फिर गांव के अन्य लोगों के पास जाती। एक दिन वह देर से आई तो बाबा ने कारण जानना चाहा। भीलनी बोली, ‘आज नदी पार करने के लिए नाव देर से मिली। इसीलिए देर से आई।’ बाबा मणि दिव्य बोले, ‘बेटी! लोग तो भगवान के नाम से भवसागर को पार कर जाते हैं, तू एक नदी नहीं पार कर सकती?’

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भीलनी पर बाबा मणि दिव्य की बात का गहरा प्रभाव पड़ा। अगले दिन वह सुबह-सुबह बाबा के द्वार पर पहुंच गई। बाबा ने पूछा, ‘आज इतनी जल्दी कैसे आ गई?’ भीलनी बोली, ‘आपने ही तो भगवत नाम का सहारा सुझाया था। आज उन्हीं का नाम लेकर नदी पार कर गई। अब नाव का सहारा लेने की जरूरत जीवन भर नहीं पड़ेगी।’ बाबा मणि दिव्य ने भगवत नाम का उपदेश दिया तो था, परंतु उन्हें स्वयं उसके इतने बड़े प्रभाव का भान न था। उन्हें लगा कि भीलनी उनसे यह बात हास्य में कह रही है।

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बाबा प्रमाण लेने भीलनी को लेकर नदी किनारे पहुंचे। वहां यह देखकर उनकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं कि भीलनी भगवान का नाम लेते हुए सहजता से नदी पार करने लगी। बाबा मणि दिव्य ने भीलनी को प्रणाम करते हुए कहा, ‘हे देवी! आज से तू ही मेरी गुरु है। मैंने तो जीवन भर भगवान का नाम लेने का उपदेश भर दिया, पर तूने तो भगवान को अपना करके दिखा दिया।’ निष्पाप हृदय वाले सच्चे मन से भगवान को पुकारते हैं तो वे भी उनके सहारे के लिए उपस्थित हो जाते हैं।

संकलन : सुरेन्द्र अग्निहोत्री