अचानक कोई क्रोधित व्यक्ति चिल्लाते हुए आया और बोला, ‘आज मुझे इस सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई? मुझे भी इस सभा का हिस्सा बनना है।’ शांत सभा में उसके क्रोधित शब्द गुंजायमान हो उठे। लेकिन बुद्ध उसी प्रकार ध्यानमग्न रहे। उसने पहले से तेज आवाज में अपना प्रश्न दोहराया। शिष्यों ने सभा की शांति को बनाए रखने के लिए भगवान बुद्ध से अनुरोध किया कि उसे आने की अनुमति प्रदान करें। बुद्ध ने कहा, ‘वह यहां बैठने योग्य नहीं है। वह अछूत है।’ शिष्य आश्चर्य में पड़ गए और बोले, ‘भगवन! आपके धर्म में तो जाति-पांति का कोई स्थान नहीं है। कोई ऊंचा-नीचा नहीं है। फिर यह छूत या अछूत कैसे?’
बुद्ध ने शिष्यों को समझाया, ‘आज यह क्रोध में है। क्रोध से शांति और एकाग्रता भंग होती है। क्रोधी व्यक्ति हिंसा करता है। अगर वह शारीरिक हिंसा से बच भी जाए तो मानसिक हिंसा अवश्य करता है। इस तरह किसी भी कारण से क्रोध करने वाला मनुष्य अछूत है। उसे कुछ समय तक एकांत में रहकर पश्चाताप करना चाहिए। तभी उसे पता चलेगा कि क्रोध कितना विनाशक होता है। अहिंसा महान कर्तव्य है। परम धर्म है।’ बुद्ध के सरल शब्दों में शांत भाव से समझाने पर शिष्य समझ गए कि अस्पृश्यता क्या है और अछूत कौन है। क्रोध करने वाले उस व्यक्ति को भी अपनी भूल का अहसास हुआ और वह शांत होकर वहां से चला गया।- संकलन : ललित गर्ग