भगवान विष्णु के छठे अवतार ने काट दिया था अपनी ही माता का गला

आसक्ति के कारण रेणुका नहीं पहुंच सकीं हवन में

एक दिन गंधर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ नदी के तट पर विहार कर रहे थे। उसी समय परशुराम की माताजी रेणुका हवन के लिए जल लेने नदी के तट पर आईं थी। गंधर्वराज और अप्सराओं की क्रीणा देखने में वह इतनी आसक्त हो गईं कि हवन के लिए समय पर जल लेकर नहीं पहुंच सकीं।

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ऋषि जमदग्नि हुए बेहद क्रोधित

ऋषि जमदग्नि हुए बेहद क्रोधित

हवन काल बीत जाने के कारण ऋषि जमदग्नि, माता रेणुका पर अत्यधिक क्रोधित हुए। उनका क्रोध इतना तीव्र था कि उन्होंने अपने बड़े पुत्र को अपनी माता का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन मात्र मोह के कारण वह ऐसा नहीं कर सके।

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माता के मोह में नहीं कर सके उनका वध

माता के मोह में नहीं कर सके उनका वध

इसी प्रकार जमदग्नि ने अपने दूसरे और तीसरे पुत्र को भी माता का वध करने का आदेश दिया लेकिन वह दोनों भी पीछे हट गए। इस पर जमदग्नि ने उन्हें उनकी विचार चेतना नष्ट होने का शाप दे दिया। लेकिन परशुराम ने पिता का कहा माना और माता का वध कर दिया। पुत्र को अपनी आज्ञा का पालन करता देख जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा। इस पर परशुराम ने अपने पिता से 3 वर मांगे।

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ऐसे किया माता को फिर से जीवित

ऐसे किया माता को फिर से जीवित

परशुराम ने पहला वरदान मांगा कि माता पुन: जीवित हो जाएं। दूसरा-उन्हें मरने की स्मृति न रहे और तीसरा- भाइयों की चेतना पुन: आ जाए। ऋषि जमदग्नि ने उन्हें तीनों वचन पूरा होने का आशीर्वाद दे दिया।

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परशुराम ने जब किया श्री गणेश पर क्रोध

परशुराम ने जब किया श्री गणेश पर क्रोध

भगवान परशुराम अत्‍यंत क्रोधी स्‍वभाव के थे। जन्‍म से ब्राह्मण थे। लेकिन उनमें क्षत्रियों जैसा गुण था। उन्‍होंने 21 बार पूरी धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। पौराणिक कथाओं में उनके क्रोध का वर्णन मिलता है। इन्‍हीं में से एक कथा मिलती है परशुराम के श्री गणेश पर क्रोध करने की। वर्णन मिलता है कि एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलास पहुंचे, तब वे ध्यान में बैठे थे। इसीलिए श्री गणेश ने परशुराम को शिवजी से मिलने नहीं दिया। इससे क्रोधित होकर परशुराम ने फरसे से श्री गणेश पर वार कर दिया। जिस फरसे से उन्होंने श्री गणेश पर वार किया, उसे स्वयं भगवान शिव ने उन्हें दिया था। ऐसे में श्री गणेश उस फरसे का वार खाली नहीं जाने देना चाहते थे। इसके चलते श्री गणेश ने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, इससे उनका एक दांत टूट गया। तभी से गणेश जी को एकदंत कहा जाता है।

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