पिता उस को स्नेह भरी दृष्टि से देखते और मुस्कुरा कर रह जाते। वे इस विषय पर तर्क वितर्क नही करना चाहते थे।
समय बीतता गया पिता बूढ़े हो गए थे। शायद वे जान गए थे कि अब उनका अंत समय निकट ही आ गया है।
अतः एक दिन अपने बेटे से कहा – बेटा तुम ईश्वर को मानो या मत मानो, मेरे लिए ये ही बहुत है कि तुम एक मेहनती, दयालु और सच्चे इंसान हो। परंतु क्या तुम मेरा एक कहना मानोगे?
बेटे ने कहा – कहिये ना पिताजी, जरुर मानूँगा।
पिता ने कहा – बेटा मेरे जाने के बाद एक तो तुम दुकान में रोज भगवान की इस तस्वीर को साफ करना और दूसरा यदि कभी किसी परेशानी में फँस जाओ तो हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से अपनी समस्या कह देना। बस मेरा इतना कहना मान लेना।
पुत्र ने स्वीकृति भर दी।
कुछ ही दिनों के बाद पिता का देहांत हो गया, समय गुजरता रहा…
दवाई की शीशी :
एक दिन बहुत तेज बारिश पड़ रही थी। राकेश दुकान में दिनभर बैठा रहा और ग्राहकी भी कम हुई। ऊपर से बिजली भी बहुत परेशान कर रही थी। तभी अचानक एक लड़का भीगता हुआ तेजी से आया और बोला – भईया ये दवाई चाहिए। मेरी माँ बहुत बीमार है। डॉक्टर ने कहा ये दवा तुरंत ही चार चम्मच यदि पिला दी जाये तो ही माँ बच पायेगी, क्या ये दवाई आपके पास है?
राकेश ने पर्चा देखकर तुरंत कहा – हाँ ये है।
लड़का बहुत खुश हुआ और कुछ ही समय के लेन देन के उपरांत दवा लेकर चला गया।
परन्तु ये क्या ! लड़के के जाने के थोड़ी ही देर बाद राकेश ने जैसे ही काउंटर पर निगाह मारी तो पसीने के मारे बुरा हाल था। क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही एक ग्राहक चूहे मारने की दवाई की शीशी वापस करके गया था। लाईट न आने की वजह से राकेश ने शीशी काउंटर पर ही रखी रहने दी कि लाईट आने पर वापस सही जगह पर रख देगा। पर जो लड़का दवाई लेने आया था, वह अपनी शीशी की जगह चूहे मारने की दवाई ले गया और लड़का पढ़ा लिखा भी नहीं था।
“हे भगवान!” अनायास ही राकेश के मुँह से निकला – ये तो अनर्थ हो गया !
तभी उसे अपने पिता की बात याद आई और वह तुरंत हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण की तस्वीर के आगे दुःखी मन से प्रार्थना करने लगा कि – हे प्रभु! पिताजी हमेशा कहते थे कि आप है। यदि आप सचमुच है तो आज ये अनहोनी होने से बचा लो। एक माँ को उसके बेटे द्वारा जहर मत पीने दो, प्रभु मत पीने दो!
भईया! तभी पीछे से आवाज आई – भैया कीचड़ की वजह से मैं फिसल गया, दवा की शीशी भी फूट गई! कृपया आप एक दूसरी शीशी दे दीजिये।
भगवान की मनमोहक मुस्कान से भरी तस्वीर को देखकर राकेश की आँखों से झर झर आँसू बह निकले।
आज उसके भीतर एक विश्वास जाग गया था कि कोई है जो सृष्टि चला रहा है, जिसे कोई शिव कहता है, तो कोई विष्णु, तो कोई ईश्वर, कोई सर्वव्यापी कहता है तो कोई परमात्मा। प्रेम और भक्ति से भरे हृदय से की गई प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं जाती।