भविष्य में कृष्ण की और होगी जरूरत, चमकते ही जाएंगे कान्हा-‘ओशो’

कृष्ण अकेले हैं जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी टोटेलिटी में। यह एक आयाम में नहीं, सभी आयाम में सच है। शायद कृष्ण को छोड़ कर…पूरे मनुष्यता के इतिहास में जरथुस्त्र एक दूसरा आदमी है, जिसके बाबत यह कहा जाता है कि वह जन्म लेते से ही हंसा। सभी बच्चे रोते हैं। एक बच्चा सिर्फ मनुष्य-जाति के इतिहास में जन्म लेकर हंसा है। यह सूचक है, इस बात का कि अभी हंसती हुई मनुष्यता पैदा नहीं हो पाई।

कृष्ण तो हंसती हुई मनुष्यता को ही स्वीकार हो सकते हैं। इसलिए कृष्ण का बहुत भविष्य है। फिर फ्रायड-पूर्व धर्म की जो दुनिया थी, वह फ्रायड-पश्चात नहीं हो सकती है। एक बड़ी क्रांति घटित हो गई है, और एक बड़ी दरार पड़ गई है, मनुष्य की चेतना में। हम जहां थे फ्रायड के पहले, अब हम वहीं कभी भी नहीं हो सकेंगे। एक नया शिखर छू लिया गया है और एक नई समझ पैदा हो गई है। वह समझ, समझ लेनी चाहिए।

पुराना धर्म सिखाता था आदमी को दमन और सप्रेशन। काम है, क्रोध है, लोभ है, मोह है, सभी को दबाना है और नष्ट कर देना है। और तभी आत्मा उपलब्ध होगी और तभी परमात्मा उपलब्ध होगा। यह लड़ाई बहुत लंबी चली। इस लड़ाई के हजारों साल के इतिहास में भी मुश्किल से दस-पांच लोग हैं जिनको हम कह पाएं कि उन्होंने परमात्मा को पा लिया। एक अर्थ में यह लड़ाई सफल नहीं हुई। क्योंकि अरबों-खरबों लोग बिना परमात्मा को पाए मरे हैं। जरूर कहीं कोई बुनियादी भूल थी। यह ऐसा ही है जैसे कि कोई माली पचास हजार पौधे लगाए और एक पौधे में फूल आ जाएं, और फिर भी हम उस माली के शास्त्र को मानते चले जाएं, और हम कहें कि देखो एक पौधे में फूल आए! और हम इस बात का ख्याल ही भूल जाएं कि पचास करोड़ पौधों में अगर एक पौधे में फूल आते हैं, तो यह माली की वजह से न आए होंगे, यह माली से किसी तरह बच गया होगा पौधा, इसलिए आ गए हैं। क्योंकि माली का प्रमाण तो बाकी पचास करोड़ पौधे हैं जिनमें फूल नहीं आते, पत्ते नहीं लगते, सूखे ठूंठ रह जाते हैं।

एक बुद्ध, एक महावीर, एक क्राइस्ट अगर परमात्मा को उपलब्ध हो जाते हैं, द्वंद्वग्रस्त धर्मों के बावजूद भी, तो यह कोई धर्मों की सफलता का प्रमाण नहीं है। धर्मों की सफलता का प्रमाण तो तब होगा, माली तो तब सफल समझा जाएगा, जब पचास करोड़ पौधों में फूल लगें और एक में न लग पाएं, तो क्षमा योग्य है। कहा जा सकेगा कि यह पौधे की गलती हो गई। इसमें माली की गलती नहीं हो सकती। पौधा बच गया होगा माली से, इसलिए सूख गया है, इसलिए फूल नहीं आ सके।

फ्रायड के साथ ही एक नई चेतना का जन्म हुआ और वह यह कि दमन गलत है। दमन मनुष्य को आत्महिंसा में डाल देता है। आदमी अपने से ही लड़ने लगे तो सिर्फ नष्ट हो सकता है।

कृष्ण, फ्रायड के बाद जो चेतना का जन्म हुआ है और जो समझ आई है, उस समझ के लिए कृष्ण ही अकेले हैं जो सार्थक मालूम पड़ सकते हैं। क्योंकि पुराने मनुष्य-जाति के इतिहास में कृष्ण अकेले हैं जो दमनवादी नहीं हैं। वे जीवन के सब रंगों को स्वीकार कर लिए हैं। वे प्रेम से भागते नहीं। वे पुरुष होकर स्त्री से पलायन नहीं करते। वे परमात्मा को अनुभव करते हुए युद्ध से विमुख नहीं होते। वे करुणा और प्रेम से भरे होते हुए भी युद्ध में लड़ने की सामर्थ्य रखते हैं। अहिंसक चित्त है उनका, फिर भी हिंसा के ठेठ दावानल में उतर जाते हैं। अमृत की स्वीकृति है उन्हें, लेकिन जहर से कोई भय भी नहीं है। और सच तो यह है, जिसे भी अमृत का पता चल गया है उसे जहर का भय मिट जाना चाहिए।

भविष्य के लिए कृष्ण की बड़ी सार्थकता है। और भविष्य में कृष्ण का मूल्य निरंतर बढ़ता ही जाने को है। जब कि सबके मूल्य फीके पड़ जाएंगे और द्वंद्व भरे धर्म जब कि पीछे अंधेरे में डूब जाएंगे और इतिहास की राख उन्हें दबा देगी, तब भी कृष्ण का अंगार चमकता हुआ रहेगा।

“कुष्ण मेरी दृष्टि में” पुस्तक से/ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन