भारत की इस महिला ने संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के समान अधिकारों की लड़ी लंबी लड़ाई

वर्ष 1897 में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक मनुभाई मेहता के यहां पुत्री ने जन्म लिया। शिक्षित परिवेश में कन्या बड़ी हुई। उसने भारत से स्नातक की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चली गईं। वहां उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ाई की। इंग्लैंड में उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुई। सरोजिनी नायडू ने उन्हें महात्मा गांधी से मिलवाया। महात्मा गांधी से मिलने के बाद तो मानो उस युवती के जीवन को नई दिशा ही मिल गई।

हंसा नाम की इस युवती ने गांधी के पास अक्सर एक युवा डॉक्टर जीवराज मेहता को देखा था। वह गांधीजी के डॉक्टर थे। हंसा डॉक्टर के सौम्य व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुईं। धीरे-धीरे दोनों करीब आए और विवाह का निर्णय कर लिया। उन दिनों अंतरजातीय विवाह आसान नहीं था। लेकिन महात्मा गांधी के व्यक्तित्व ने दोनों को कठिनाइयों से जूझना तो सिखा ही दिया था। दोनों ने शादी की और आगे भी हर कदम पर संघर्ष करना जारी रखा। बापू के ही कहने पर हंसा ने 1930 में देश सेविका संघ की कमान संभाली और विदेशी कपड़ों तथा शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए सत्याग्रह आंदोलन किया। फिर उन्हें बॉम्बे कांग्रेस कमेटी का प्रमुख बना दिया गया। शिक्षित, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से परिपूर्ण हंसा ने बॉम्बे में अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें ‘डिक्टेटर ऑफ बॉम्बे’ कहा जाने लगा।

समानता की पक्षधर हंसा मेहता ने जेंडर की लड़ाई को भी महत्वपूर्ण ढंग से आगे बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र में समानता के उद्घोष वाली धारा में पहले मनुष्य की जगह पुरुष लिखा हुआ था। हंसा मेहता ने मसले को उठाया और उनके प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र की धारा में सभी पुरुष एक समान के स्थान पर ‘सभी मनुष्य एक समान…’ किया गया। आश्चर्य नहीं कि कदम-कदम संघर्ष करने वाली हंसा मेहता का जीवन आज भी सबके लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।– संकलन : रेनू सैनी