भारत छोड़ो आंदोलन से उखड़ने लगे थे अंग्रेजों के पांव, बादशाह खान ने बताया अहिंसा क्यों जरूरी थी

आजादी के बाद पंद्रह वर्षों का कठोर कारावास झेलकर बादशाह खान काबुल में थे। उनसे देश-विदेश के बहुत से लोग मिलने आते थे। एक रोज वह गांधी जी के सहयोगी प्यारेलाल के साथ बैठे थे, तभी डेनमार्क के एक कपल मिस्टर एंड मिसेज स्टाइन उनसे मिलने आए। ये यूरोप में शांति स्थापना के कार्यक्रमों में लगे हुए थे। खान साहब से जब इन लोगों ने मुलाकात की तो उनका एक ही सवाल था, ‘अहिंसा का उपयोग सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को हल करने में कैसे किया जा सकता है?’

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खान साहब ने उनका जवाब देते हुए कहा, ‘हिंदुस्तान का पूरा स्वतंत्रता संघर्ष इसका ही तो उदाहरण है।’ मिस्टर स्टाइन बोले, कैसे? तब खान साहब ने कहा, ‘आप भारत छोड़ो आंदोलन को देखिए, हमने तय किया था कि कोर्ट कचहरी के सामने अहिंसापूर्ण प्रदर्शन करेंगे, मगर जिस जगह जनता ने हिंसा का सहारा लिया, वहां अंग्रेजों ने जबरदस्त दमन किया। जिससे जनता सहम गई। मगर खुदाई खिदमतगारों ने अहिंसा का रास्ता पकड़ा और भारत छोड़ो आंदोलन में खुद के सीने पर लाठियां खाईं, पर उन्होंने हाथ तक नहीं उठाया। उन्हें नंगा करके गलियों में टहलाया, मारा गया। बेइज्जत किया गया, मगर उन्होंने तलवार को हाथ नहीं लगाया। इससे जनता में उनके प्रति सहानुभूति और अंग्रेजों के प्रति रोष बढ़ गया और अंग्रेजों के पांव उखड़ने लगे।’

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उन्होंने कहा, ‘मिस्टर स्टाइन एक बात जान लीजिए, गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन में वे सारे बीज बो दिए हैं, जिन पर भविष्य की इमारतें खड़ी होंगी। अहिंसा के साथ किया गया संघर्ष न्याय मार्ग को मजबूत करेगा और यह भी जान लीजिए, किसी के साथ अन्याय करना भी हिंसा ही है। केवल हथियार उठाना ही हिंसा नहीं है। अन्याय का साथ देना भी हिंसा है।’ वास्तव में अहिंसा का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसी में सामाजिक, राजनीतिक शांति के सूत्र गूंथे हुए हैं।- संकलन : हफीज किदवई