भिखारी को भीख देने से इसलिए मना किया मुहम्मद साहब ने

योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी

एक बार मुहम्मद साहब भोजन कर रहे थे, तभी एक भिखारी आया और अपना कटोरा को मुहम्मद साहब के सामने फैलाकर कहने लगा! अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो। मुहम्मद साहब खाना खाते रहे! भिखारी बोला, कुछ खाने को ही दे दो! मुहम्मद साहब अब भी अपना खाना खाते रहे। जब एक रोटी बाकी रह गई, तब भिखारी बोला- अब एक रोटी तो दे दो!

जब आधी रोटी रह गई तब फिर भिखारी बोला, आधी ही दे दो! लेकिन मुहम्मद साहब ने उसको कुछ भी नहीं दिया। भिखारी बोलने लगा कैसा आदमी है, सारी रोटी अपने आप खा गया, मुझे एक टुकड़ा भी नहीं दिया। मुहम्मद साहब उठे और उस भिखारी को साथ लेकर चल दिए। बाजार पहुंचे, वहां उस भिखारी को कहा अपना ये कटोरा बेच, भिखारी का कटोरा बिकवाया उस पैसे से कुल्हाड़ी खरीदवाई।

कुल्हाड़ी खरीदने के बाद, मुहम्मद साहब उस भिखारी को जंगल ले गए और भिखारी को कहा सूखी लकड़ियां काट। लकड़ी कटवाने के बाद उनकी गठरी बंधवाई और भिखारी के सिर पर रखी! अब उसको लकड़ी बाजार ले आए! लकड़ियां बिकवाईं, अब उस भिखारी को खाने की दुकान पर ले गए और भिखारी द्वारा कमाए गए पैसों से खाना खिलवाया, उसके बाद मुहम्मद साहब ने उस भिखारी से कहा ऐसा रोज करना। मेहनत करो, कर्मठ बनो, कमाओ और खाओ, भिखारी नहीं बनना।

महानता भीख देने में नहीं, बल्कि सामने वाले को इस काबिल बनाने में है कि वह किसी के आगे हाथ न फैलाएं। चूंकि इसमें समय लगता है, इसलिए व्यक्ति दान या भीख देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। लेकिन इससे भीख वृत्ति को बढ़ावा मिलता है। बेहतर होगा कि अपने जीवन में ज्यादा नहीं तो किसी एक को स्वाबलंबी बनाएं, फिर उससे जो खुशी मिलेगी वो भीख देने की खुशी से कई ज्यादा होगी।