कई पौराणिक ग्रंथों में पता चलता है कि राम को हराने के लिए रावण ने कई तरह के यज्ञ किए थे। एक अन्य पौराणिक ग्रंथ रामकियेन के अनुसार, मंदोदरी ने उमा से संजीवन यज्ञ का रहस्य जान लिया था, जिसके द्वारा अमृत प्राप्त होता है। हनुमान रावण का रूप धारण करके मंदोदरी के पास गया और उसे अपने बाहुपाश में बद्ध करके उसका सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे उसका यज्ञ असफल हो गया।
रामकियेन में रावण के प्रयत्नों का वर्णन है जिसके अनुसार रावण संधि करके युद्ध टालना चाहता था। सेतु निर्माण के पहले रावण तपस्वी के रूप में राम के पास गया और युद्ध छोड़ देने का अनुरोध किया। इंद्रजाीत के वध के बाद रावण ने पितामह ब्रह्मा को बुलाया बाद में सीता को भी। उनकी गवाही सुनकर ब्रह्मा ने सीता को वापस करने का आदेश दिया। रावण के अस्वीकार करने पर ब्रह्मा ने उसे राम के बाण से मरने का शाप दिया। महानाटक के अनुसार रावण ने अपने दूत लोहिताक्ष के द्वारा राम से कहा था कि परशुराम से प्राप्त हरप्रसादपरशु के बदले में सीता को लौटाने को तैयार हूं। इस प्रस्ताव का उल्लेख रामचंद्रिका में भी है। रामाभ्युदय में रावण के एक अन्य संधि-प्रस्ताव की भी चर्चा है।
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सेरीराम के अनुसार, कुंभकर्ण के वध के बाद राम ने हनुमान के द्वारा रावण के पास एक पत्र भेजा जिसमें सीता को लौटाने तथा संधि करने का प्रस्ताव था। रावण राम का प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए तैयार था बशर्ते वह उसकी बहन को विरूपित करने वाले लक्ष्मण को बांधकर लंका भेज दे। रामचंद्रिका में भी रावण निम्नलिखित शर्तों पर सीता को लौटाने के लिए तैयार है- सुग्रीव को मारकर अंगद को किषिकंधा का राज्य दिया जाए हनुमान की पूंछ जला दी जाए तथा राम रूद्र की पूजा करें।
रामकियेन के अनुसार एक गुप्तचर राक्षस गीध बनकर वानर-सेना में घुस गया। वानरों ने उसे पहचानकर पकड़ लिया और खूब पीटा तथा लंका वापस भेज दिया। तब रावण एक सन्यासी बनकर राम के पास गया और राम से युद्ध न करने का अुनरोध करने लगा। परंतु राम का दृढ़ संकल्प देखकर वह वापस लौट आया। पद्मपुराण के अनुसार जब अतिकाय तथा महाकाय वानरों के द्वारा बंदी बना लिए गए तभी अतिकाय ने शुक्राचार्य की एक भविष्यवाणी के बारे में बताया कि लंका के द्वार एक दारुपंचवक्त्र है। जो कोई भी उसे तोड़ पाएगा वही रावण को मार सकेगा। राम ने तुरंत जाकर उस दारुपंचवक्त्र को क्षण भर में ही छिन्न-भिन्न कर दिया।
अध्यात्म रावण के अनुसार रावण की नाभि में अमृतकुंड था। विभीषण से यह रहस्य जानकर राम ने आग्नेय बाण से उसे सुखा दिया जिसके कारण बाद में रावण की मृत्यु हुई थी। यही बातें आनंद रामायण, रंगनाथ रामायण आदि में भी वर्णित है। सेरीराम के अनुसार सीता ने हनुमान से कहा था कि रावण के पास एक मायावी खड्ग है जिसकी पूजा मंदोदरी करती है। हनुमान ने मंदोदरी के पास जाकर झूठमूठ रावण की मृत्यु का समाचार सुनाया, जिससे वह शोकाकुल हो गई। हनुमान ने उस स्थिति का लाभ उठाया और खड्ग लेकर वहां से भाग आए तथा उसे राम को दे दिया। इस प्रकार रावण को मारने में श्रीराम सफल हुए।
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