बुद्ध मुस्कराए और उन्होंने कहा, ‘वत्स! तुम्हारा सोचना गलत है। वृक्ष भले बोलकर उत्तर न दे सकता हो, पर जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की एक भाषा होती है, उसी प्रकार प्रकृति की भी अपनी भाषा होती है। वृक्ष में भी प्राण हैं, उसकी भी अपनी भाषा है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने साधना की है। इसकी घनी पत्तियों ने मुझे शीतलता प्रदान की है। चिलचिलाती धूप, वर्षा से इसने मेरा बचाव किया है। प्रत्येक पल इसने मेरी सुरक्षा की। इसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा परम कर्तव्य है। और बात सिर्फ इस पेड़ की नहीं है। प्रत्येक जीव को समस्त प्रकृति का कृतज्ञ होना चाहिए।’
आगे बुद्ध ने समझाया, ‘तुम इस वृक्ष की ओर ध्यान से देखो। इसकी हिलती हुई टहनियों को देखो, इसके हिलते हुए पत्तों को देखो। इससे आने वाली मंद-मंद हवा को महसूस करो। धीरे-धीरे तुम इससे जुड़ने लगोगे। फिर महसूस करोगे कि ये वृक्ष बातें भी करते हैं।’ बुद्ध की बात पर शिष्य ने वृक्ष को नए आलोक में देखा तो उसे अनुभव हुआ सचमुच वृक्ष की पत्तियां, शाखाएं, फूल मन को एक अद्भुत शांति प्रदान कर रहे हैं। अब शिष्य भी वृक्ष के सम्मान में झुक गया।- संकलन : आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’