धर्मग्रंथ हों, शास्त्र हों या फिर पुराण। सब हमें जीवन जीने की कला और रिश्तों में सामंजस्य कैसे बिठाएं इसकी सीख देते हैं। सनातन धर्म का ऐसा ही एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है ‘महाभारत।’ जिसे अगर धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। महाभारत के कई किरदारों से जीवन जीने की कला और रिश्तों को निभाने का हुनर सीखने को मिलता है। महाभारत में ऐसे ही एक महान योद्धा हुए ‘कर्ण।’ जिन्हें दानवीर, महावीर और ऐसी ही तमाम उपाधियों से नवाजा गया है। उनके चरित्र से हमें भी जीवन जीने के लिए 3 सबसे जरूरी बातों का ज्ञान मिलता है।
वचनबद्धता का महत्व
कर्ण महाभारत के सबसे प्रतिभावान व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने अपने व्यवहार के जरिए यह संदेश दिया कि व्यक्ति को वचनबद्ध होने का महत्व समझना चाहिए। संदेश इस घटना से मिलता है कि जब युद्ध होने वाला था तो भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह पांडवों की ओर से युद्ध करें तो उन्हें पूरा राज्य मिल जाएगा। लेकिन कर्ण ने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह अपने मित्र दुर्योधन की ओर से युद्ध करने के लिए वचनबद्ध थे। ऐसे में उन्हें श्रीकृष्ण की ओर से मिले प्रस्ताव का लालच भी डिगा नहीं सका।
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सबसे बड़ा धर्म है दान
कर्ण महादानी इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि जब दान की बात आती है तो वह यह नहीं देखते कि मांगने वाला शत्रु है या मित्र। इसका उल्लेख महाभारत में कुछ इस प्रकार मिलता है कि जब युद्ध से पहले इंद्र ने कर्ण से उनका कवच मांगा। तो कर्ण भी जानते थे कि कवच मांगने वाले स्वयं भगवान इंद्र हैं। साथ ही कवच देने से युद्ध में उनके लिए समस्या हो सकती है लेकिन फिर भी उन्होंने बिना टालमटोल किए इंद्र को कवच का दान दे दिया। कर्ण इस व्यवहार से यह संदेश देते हैं कि जीवन में दान ही सबसे बड़ा धर्म है और इसका अपना ही महत्व है।
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आदर्श मित्र का दिया उदाहरण
कर्ण ने महाभारत के जरिए यह भी संदेश दिया कि एक मित्र को कभी भी धोखेबाज नहीं होना चाहिए। इसका उदाहरण कुछ इस तरह मिलता है कि जब माता कुंती उनसे यह कहने गई कि वह पांडवों के बड़े भाई हैं। ऐसी स्थिति में कर्ण को अपने भाइयों की ओर से ही युद्ध लड़ना चाहिए। लेकिन कर्ण ने इस पर यह तर्क दिया कि वह अपने दोस्त दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकते। यह महावीर कर्ण को आदर्श मित्र की भी उपाधि से सम्मानित करता है।
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