महाशिवरात्रि विशेष: जानिए शिव का अर्थ, तांडव से लेकर भोलेनाथ तक की क्रिया

आज देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। शव में ई यानी शक्ति को प्रविष्ट करने की प्रक्रिया है शिव। भारतीय दर्शन में शिव को अंतर्चेतना माना गया है। आध्यात्मिक मान्यताएं शिव को आंतरिक शक्ति मानती हैं। आध्यात्म कहता है कि आत्मा जब किसी खोल में, पिंड में, शरीर में डाल दी गई, तो वह उसके नियम से बंध गई। उससे स्वयं की क्षमता विस्मृत हो गई। जैसे समझ लें कि मेमोरी की फाइल डिलीट कर दी गई, क्योंकि यदि आत्मा का स्वयं की शक्ति से परिचय बना रहता तो इतनी सक्षम उर्जा को एक छोटे से पिंड में बांध पाना संभव ही ना होता। उसे एक अदने से शरीर से बांध कर अदना बना देना संभव ही ना हो पाता। लिहाजा, यह सृष्टि चल ही ना पाती। इस कायनात को चलाने के लिए आवश्यक हो गया कि पहले व्यक्ति से उसके शिव के बोध का विस्मरण कराया जाए यानी शिव से दूर किया जाए। शिवत्व से वंचित किया जाए। अतएव, शरीर में शिवत्व का प्रावधान रखा ही नहीं गया, रचा ही नहीं गया। यदि शिवत्व होता, तो इतनी बड़ी चेतना एक मामूली से पिंड के इशारे पर चल ही ना पाती।

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कहीं पुन: किसी भी प्रकार से शिवत्व सक्रिय ना हो जाए, इसके लिए अंत:करण की रचना की गई और उसे शरीर के तत्वों में ना मिलाकर अलग से जोड़ दिया गया। अंत:करण एक ऐसा औजार है, जिसमें सुरत अर्थात् जीवात्मा की समस्त शक्तियों को निष्क्रिय करने की क्षमता विद्यमान है। यह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से निर्मित है। इस अंत:करण ने रूह को उसके शिव से पूर्णत: अलग-थलग कर दिया। आप मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार में उलझ गए और अपने शिवत्व को भूल बैठे। आपको मन ने उलझा दिया, चित्त ने चित कर दिया। अपनी बुद्धि को ही असली शक्ति समझ बैठे। शिवमय होते हुए भी आप शिवहीन हो गए। बस, यहीं से दुर्भाग्य का आगाज हुआ।

करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥

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जब युगों-युगों बाद कभी सत्य का ज्ञान होता है और शिव की पहचान करके शिवनेत्र को खोलने में कामयाब हो जाते हो, तब जीवात्मा अपनी उर्जा शिव में अंगीकार होकर जिस रोष का इजहार करती है, उसे ही तांडव कहा गया है।

फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात्रि में अंत:करण सबसे कमजोर स्थिति में होता है। यह रात्रि स्वयं से साक्षात्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस रात्रि में स्व जागरण सहज हो जाता है। इसी त्रयोदशी को महाशिवरात्रि कहते हैं। आध्यात्मिक मान्यताएं पर्व पर दिवस की जगह रात्रि को महत्वपूर्ण मानता है।– सदगुरुश्री डॉ. स्वामी आनन्द जी