मुगलों के कारण यहां नहीं मनाते होली, यहां रहता है शोक का माहौल

होली पर आज जहां हर तरफ रंग-गुलाल की मस्‍ती चढ़ती है वहीं उत्‍तराखंड, राजस्‍थान और यूपी के कुछ गांवों में आज भी होली नहीं मनाई जाती। इनमें राजस्‍थान की चोवटिया जोशी जाति, उत्‍तराखंड के तीन और रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र के दो गांव हैं। मान्यता के अनुसार, ये गांव शाप के चलते ऐसा नहीं करते हैं। यही वजह है कि दशक बीत गए लेकिन आज भी यहां कोई होली नहीं खेलता है।

खजूरी और जलालपुर धई में होली के दिन रहता है शोक
रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र में खजूरी गांव में होली के दिन शोक मनाते हैं। इस बारे में गांव के लोगों का कहना है कि पुराने समय में खजूरी गांव के किले को मुगल शासकों ने होली के दिन ही ध्‍वस्‍त कर दिया था। सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी। तब से आज तक होली पर्व नहीं मनाया जाता है। वहीं जलालपुर धई में होली के दिन शोक मनाने के पीछे कहा जाता है कि जलालपुर धई रियासत थी। कभी वहां पर धईसेन नाम के राजा का शासन था। उनके ही नाम पर जलालपुर धई रियासत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बता दें कि वह बहुत ही अच्‍छा राजा था। प्रजा का ख्‍याल रखता था।

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उसकी रियासत पर मुगल शासक सैयद जमालुद्दीन की नजर थी। वह उस रियासत का स्‍वामित्‍व चाहता था। इसके बाद एक बार उसे पता चला कि होली के दिन राजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलते हैं। वहीं इस दिन राजा धईसेन अपने साथ कोई भी अस्‍त्र-शस्‍त्र नहीं रखते। बस इसी बात का फायदा उठाकर जमालुद्दीन ने होली के दिन धईसेन और उसकी प्रजा पर आक्रमण कर दिया। धईसेन और उसके निहत्‍थे सैनिकों ने बहुत ही वीरता से उनका सामना किया लेकिन धईसेन इस युद्ध में वीरगति को प्राप्‍त हुए।

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इस घटना को दशक बीत गए लेकिन उस दिन के बाद से होली के दिन जलालपुर धई में शोक का माहौल रहता है। हालांकि कहा जाता है कि इस दर्दनाक हादसे के बाद धईसेन वहां की प्रजा के स्‍वप्‍न में आए और उन्‍होंने होली के सातवें दिन के बाद जो भी सोमवार या शुक्रवार पड़े उस दिन होली का पर्व मनाया जाए ऐसा कहा। इसलिए यहां के लोग होली के सातवें दिन होली का त्योहार मनाते हैं।

उत्तराखंड के क्‍वीली, कुरझण और जौंदला में 150 साल से नहीं मनीं होली

मुगलों के कारण यहां नहीं मनाते होली, यहां रहता है शोक का माहौल

उत्तराखंड के क्‍वीली, कुरझण और जौंदली गांव में तकरीबन 150 सालों से होली नहीं मनाई गई। यह गांव रूद्रप्रयाग के अगस्‍त्‍य मुनि ब्‍लॉक के अंतर्गत आता है हैं। इन गांवों में होली के दिन शोक मनाए जाने के पीछे कई सारी मान्‍यताएं हैं। इसमें एक मान्‍यता यह है कि इस गांव की इष्‍टदेवी मां त्रिपुर सुंदरी देवी हैं। कहा जाता है कि मां को हुड़दंग पसंद नहीं है। ऐसे में होली पर तो मस्‍ती होती ही है तो लोगों ने होली खेलनी बंद कर दी। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस गांव में जब डेढ़ सौ साल पहले लोगों ने होली खेलने की कोशिश की तो तीनों ही गांव में हैजा महामारी फैल गई। इसके बाद लोगों ने होली खेलने की हिम्मत कभी नहीं की।

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राजस्‍थान की चोवटिया जोशी जाति के लोग नहीं मनाते होली

मुगलों के कारण यहां नहीं मनाते होली, यहां रहता है शोक का माहौल

राजस्‍थान में ब्राह्मण जाति के चोवाटिया जोशी जाति के लोग होली नहीं मनाते। इसके पीछे कहा जाता है कि एक अरसे पहले इसी जाति की एक महिला होली के दिन होलिका की पवित्र अग्नि के फेरे लगा रही थी तभी उसका बेटा होलिका में गिर गया। इसके बाद बच्‍चे को बचाने के चक्‍कर में महिला की मौत हो गई। कहा जाता है कि जिस वक्‍त उस महिला की मौत हुई वह अपने बेटे के गम में इतनी आहत थी कि उसने मरते-मरते कहा कि अब कभी कोई इस गांव में होली नहीं मनाएगा। इस घटना के बाद से इस जनजाति के लोग होली मनाने का साहस नहीं जुटा पाए। अरसा बीत गया लेकिन आज भी इस जाति के लोग यहां शोक ही मनाते हैं।

मुगलों के कारण यहां नहीं मनाते होली, यहां रहता है शोक का माहौल

देश के लगभग हर हिस्से में होली जलाई जा रही है, मगर बुंदेलखंड के सागर जिले का हथखोह एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर जाते हैं, क्योंकि एक किवदंती उन्हें याद आ जाती है। वे होलिका का दहन ही नहीं करते। यहां होली की रात आम रातों की तरह होती है। सागर जिले के देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में होलिका दहन को लेकर न तो उत्साह है और न ही किसी तरह की उमंग।

झारखंडन माता मंदिर के पुजारी बलराम ठाकुर बताते हैं, ‘गांव के लोगों के बीच यह चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दशकों पहले यहां होली जलाई गई थी, तब बड़ी संख्या में मकान जल गए थे और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधन की, तब आग नियंत्रित हुई थी।’ ठाकुर कहते हैं, ‘यहां के लोगों की आराध्य हैं झारखंडन देवी। यहां लोग अपनी मन्नत पूरी करने विविध धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। लोगों की मनोकामना भी देवी के आशीर्वाद से पूरी होती है। लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने भी आते हैं।’