राधाष्टमी विशेष : सुरैया महापर्व के वे सोलह दिन, जो जीवन में कर सकते हैं चमत्कार

भाद्र शुक्ल अष्टमी तिथि को हर साल राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से ही 16 दिनों तक चलने वाला सुरैया पर्व आरंभ होता है, जिसे भारतीय धर्म दर्शन में समृद्धि का पर्व कहा जाता है। यह पर्व आंतरिक और बाह्य दोनों प्नकार की उन्नति का वाहक है और आपको आपके स्व से यानी खुद से परिचित करा कर सिर्फ आपका भविष्य ही नहीं आपमें ब्रह्मांड को बदलने की शक्ति का संचार भी करता है।

लक्ष्मी उपासना के लिए बेहद महत्वपूर्ण है सुरैया काल, राधाअष्टमी से होगी शुरुआत

सुरैया पर्व उत्तर और पूर्व भारत का यह गुप्त महापर्व है, जो सोलह से बने सोहरैया का अपभ्रंश है। यह पर्व आमजन में प्रचलित न होकर सिद्धों और साधकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। ये सोलह दिन हैं तो बेहद प्रभावी और कभी बड़े प्रचलित भी थे। पर वक्त के थपेड़ों में कालांतर में वे गुप्त और लुप्त हो गए। इन सोलह रात्रियों का आगाज होता है भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से। यह राधाअष्टमी कहलाती है। अलग-अलग पंथ, संप्रदाय और मत के लोग इसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं, पर कहते हैं कि आत्मजागरण के इस पर्व का प्रयोग राम, परशुराम, दुर्वासा, विश्वामित्र, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर आचार्य चाणक्य तक ने किया।

प्राचीन काल में उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और नेपाल तक की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समृद्धि के सूत्र इन षोडश दिवस में समाहित हैं। यांत्रिक, तांत्रिक, वैज्ञानिक, आत्मिक यानी स्वजागरण से लेकर समृद्धि प्राप्ति तक के लिए बेहद असरदार और धारदार माना जाता है यह पवित्र काल खण्ड। इसलिए आत्मबोध के प्यास की अनुभूति क्षीण होते ही आत्मजागृति के इस महापर्व को लक्ष्मी साधना का पर्व मान लिया गया।

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ये सत्य है कि इन दिनों यक्षिणी और योगिनी साधना का अतिमहत्व है और आध्यात्मिक मान्यताएं यक्ष-यक्षिणी को स्थूल समृद्धि का नियंता मानती हैं। ध्यान रहे कि कुबेर यक्षराज और लक्ष्मी यक्षिणी हैं। इसलिए लक्ष्मी से संबंधित उपासना दिवाली नहीं, इन सोलह दिनों में महासिद्धि प्रदान करने वाली कही गई है। लक्ष्मी के उपासकों से लेकर आत्मजागृति के पैरोकार इन सोलह दिनों तक उपासना और उपवास में रमे होते हैं। सदगुरुश्री के अनुसार आत्मिक उत्थान चाहने वालों के लिए ये रात्रियां बेहद कीमती हैं।

सदगुरुश्री (स्वामी आनन्द जी)