योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी
राम सिंह एक सेठ के पास नौकरी करता था। सेठ दिनभर बंधवा मजदूर की तरह उससे काम लेता बदले में बचाखुचा खाने को देता। तनख्वाह के नाम पर कह देता, तेरे घर भेज दूंगा। नौकर पुराना था, लेकिन अब सेठ दिनभर राम सिंह को गाली देता रहता था। राम सिंह काम से दुखी नहीं था, बल्कि सेठ की गालियों से परेशान था। एक दिन राम सिंह मौका पाकर अपने गांव जाने के लिए भाग गया। रात होने पर रास्ते में एक मंदिर में रात बिताई।
सुबह पुजारी ने राम सिंह से हालचाल पूछा, तो राम सिंह ने सब बोल दिया। पुजारी ने कहा- दो सप्ताह मंदिर की सेवा करो और आज से तुम्हारा नाम श्याम सिंह है। मंदिर में जितने भी भक्त आते, सब उसको श्याम बुलाते। दिन में अनेक बार श्याम-श्याम पुकारने से राम सिंह को अब श्याम नाम पक्का हो गया। दो सप्ताह बाद पुजारी ने कहा अब तुम सेठ के पास जाओ, लेकिन उसको यह नहीं बताना कि अब तुम्हारा नाम श्याम हो गया है। नौकर ने ऐसा ही किया।
श्याम के पहुंचते ही सेठ ने फिर गाली देना शुरू कर दिया। राम को पड़ती गाली से श्याम पर कोई असर नहीं पड़ रहा था, क्योंकि उसका नाम बदल चुका था। सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ! अब सेठ को चिंता होने लगी कि पहले यह गाली खाने पर दुखी होता था, अब मुस्कुरा रहा है। राम सिंह ने बोला- सेठजी गाली राम को दे रहे हो, लेकिन मैं तो राम हूं ही नहीं, मैं तो अब श्याम हो गया। हमारे सभी नाम-रूप बाहर के हैं, जो बदले जा सकते हैं। जो बदलता रहे, वो हम नहीं हैं, बल्कि जिसमें कभी बदलाव न आए, वही आत्मरूप हम हैं। नाम-रूप हमारे अहंकार को पक्का करते हैं और अहंकार को ठेस लगने से व्यक्ति दुखी होने लगता है। इसलिए अपने को चेतन तत्व मानो, फिर आपको कोई दुःख नहीं होगा।