लेकिन अहम प्रोजेक्ट से जुड़े जूनियर वैज्ञानिक ने जब काम शुरू किया तो वक्त कैसे बीतता चला गया, अहसास ही नहीं हुआ। ख्याल नहीं रहा कि आज उन्हें जल्दी घर जाना था। काम समाप्त होने के बाद जब ध्यान आया, तब तक प्रदर्शनी जाने का समय निकल चुका था। बड़े दुखी हुए कि बच्चों को खुशी का एक मौका देना था, वह भी नहीं दे सके। समझ नहीं पा रहे थे कि घर जाकर पत्नी और बच्चों से क्या कहेंगे।
लेकिन घर पहुंचे तो वहां एकदम अलग माहौल था। दरअसल उन्हें काम में डूबा देख डॉ. कलाम ने डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा, लेकिन वह खुद आकर बच्चों को प्रदर्शनी घुमाने ले गए। बच्चों ने भरपूर एंजॉय किया। उनके साथ यादगार पल बिताए। डॉ. कलाम जैसे सहृदयी और संवेदनशील इंसान ही ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। इंसान असाधारण तब नहीं बनता जब वह असाधारण काम करता है। वह असाधारण इसलिए बन पाता है क्योंकि वह साधारण सी दिखने वाली बातों को भी गंभीरता से लेता है। हम सबके प्यारे और चहेते डॉ. अब्दुल कलाम की शख्सियत कुछ ऐसी ही थी। उनके जीवन की साधारण सी लगने वाली घटनाएं भी हमें काफी कुछ सीख देती हैं। सचमुच वह एक असाधारण बॉस थे।– संकलन : ललित गर्ग