शारदीय नवरात्र: जानिए कौन हैं ये 9 देवियां और कहां होता है इनका निवास

आध्यात्मिक गुरु: सदगुरुश्री स्वामी आनंद
नवरात्र दरअसल दो ऋतुओं के संधिकाल में स्वयं को तराशने व निखारने वाला बेहद विलक्षण और अदभुत नौ दिवसीय पर्व है। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक का यह महापर्व मानव की आंतरिक ऊर्जाओं के भिन्न भिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है। इनको ही मान्यतायें नौ प्रकार की शक्तियों या देवियों की संज्ञा देती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री किसी अन्य लोक में रहने वाली देवी से पहले मनुष्य की अपनी ही ऊर्जा के नौ निराले रूप हैं।

नवरात्रि में मां दुर्गा के इन चमत्कारिक मंत्रों का करें जप, हर संकट से मिलेगी मुक्ति

कौन हैं ये नौ देवियां, कहां है इनका निवास
शैलपुत्री अपने अस्त्र त्रिशूल की भांति हमारे त्रीलक्ष्य, धर्म, अर्थ और मोक्ष के साथ मनुष्य के मूलाधार चक्र पर सक्रिय बल है, वहीं ब्रह्मचारिणी अपनी कमंडल यानि पूर्व कर्म या प्रारब्ध और माला अर्थात् नवीन कर्म के साथ कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वाधिष्ठान चक्र की शक्ति हैं। हमारे मणिपुर चक्र अर्थात् नाभि चक्र की ऊर्जा चंद्रघंटा जीवन के ढेरों सुगंधों और ब्रम्हाणीय ध्वनियों के संग अपने हस्त के बंद कमल के रूप में कीचड़ में भी पवित्रता व स्निग्धता के साथ अनेक लक्ष्य के साथ भी एकजुटता की द्योतक हैं।

वहीं अनाहत चक्र यानि ह्रदय चक्र पर गतिशील ऊर्जा, कूष्माण्डा के हाथ के शस्त्र, कमंडल, पुष्प, अमृत कलश, चक्र व गदा के साथ धनुष-बाण अनेक माध्यमों से समस्त सिद्धियों और निधियों को समेट कर एक लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का संकेत है। विशुद्ध चक्र यानि कंठ चक्रपर क्रियाशील शक्ति स्कंदमाता अपने हस्त के खिलते पंकज के रूप में एक केंद्र पर चेतना के विस्तार को परिलक्षित करती है।

आज्ञा चक्र की ऊर्जा, जो कात्यायनी कहलाती है, अपने अस्त्र तलवार के धार की तरह तीसरे तिल से आगे बढ़ कर जीवात्मा को अपने तत्व शब्द को थाम कर अपनी परम चेतना सदगुरु यानि प्रभु में समाहित होने की प्रेरणा देती है। कालरात्रि मुख्यतः सहस्त्रार चक्र का निचला बल है, जो अपने शस्त्र कृपाण से हमारे बंधनों को काट कर, काल (समय) जिन्हें इस जगत का ईश्वर भी कहा जाता है, की सहमति और कृपा प्रदान करके जीवात्मा को इस स्थूल शरीर से परे जाने के लिए प्रेरित करती है।

देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्र में इन चीजों का खाना है पूरी तरह वर्जित

महागौरी सहस्त्रार चक्र की मध्यशक्ति है, जो अभय मुद्रा, वर मुद्रा, डमरू और शूल से हमें महाध्वनि अर्थात् परम नाद से जोड़ने में सहायक होती है। सहस्त्रार की उच्च ऊर्जा सिद्धिदात्री अपनी अष्टसिद्धियों, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्यप, ईशित्व और वशित्व की सहायता से हमें तृतीय द्वार से आगे बंकनाल तक सदगुरु में मिलाकर इस निचली परत के ऊपर मोक्ष की ओर गति प्रदान करती है।