छत्रपति शिवाजी महाराज तलवारबाजी में जितने निपुण थे, वह चरित्र के भी उतने ही धनी थे। अपने चरित्र और तलवार को उन्होंने कभी दागदार नहीं होने दिया। एक बार शिवाजी के वीर सेनापति ने कल्याण का किला जीता। हथियारों के जखीरे के साथ-साथ उनके हाथ अकूत संपत्ति भी लगी। एक सैनिक ने मुगल किलेदार की बहू को, जो देखने में काफी सुंदर थी, सेनापति के सामने पेश किया। वह सेनापति उस नवयौवना के सौंदर्य पर मुग्ध हो गया। सेनापति ने शिवाजी महाराज को वह महिला बतौर नजराना भेंट करने की ठानी।
सेनापति उस नवयौवना को एक पालकी में बिठाकर शिवाजी महाराज के दरबार में पहुंचा। शिवाजी महाराज उस समय अपने सेनापतियों के साथ शासन-व्यवस्था के संबंध में विचार-विमर्श कर रहे थे। युद्ध में जीतकर आए सेनापति ने शिवाजी महाराज को प्रणाम किया और कहा, ‘महाराज, कल्याण से जीतकर लाई गई एक चीज आपको भेंट करना चाहता हूं।’ यह कहकर उसने एक पालकी की ओर इंगित किया। शिवाजी महाराज ने ज्यों ही पालकी का पर्दा उठाया तो देखा कि उसमें एक सुंदर मुगल नवयौवना बैठी हुई है। शिवाजी महाराज का शीश लज्जा से झुक गया। इसके बाद अपने सेनापति को डांटते हुए उन्होंने कहा, ‘तुम मेरे साथ रहते हुए भी मेरे स्वभाव को समझ नहीं सके। शिवाजी दूसरे की माता-बेटियों को अपनी मां के समान मानते हैं। बिना विलंब किए इन्हें ससम्मान इनकी माता के पास छोड़कर आओ।’
कहां तो वह अपने आपको इनाम का हकदार समझ रहा था और नसीब हुई तो सिर्फ शिवाजी महाराज की फटकार। सेनापति शिवाजी महाराज के इस व्यवहार से काफी अचंभित हुआ। मुगल सूबेदार की बहू को उसके घर पहुंचाने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं था। लेकिन इसके साथ वह शर्मिंदा भी हुआ। उसने शिवाजी महाराज के चरित्र को पहचाना। मुगल खेमे की महिला को पूरी इज्जत के साथ उसके खेमे तक पहुंचा दिया गया।
आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’