मंगला गौरी व्रत
सावन में जितने भी मंगलवार आएं, उन दिनों शिव-गौरी का पूजन किया जाता है। मंगलवार को गौरी पूजन होने के कारण ही इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं। यह व्रत विवाह के बाद 5 वर्ष तक प्रत्येक स्त्री को करना चाहिए। विवाह के बाद पहले सावन में पीहर में रहकर, अन्य चार साल में ससुराल में यह व्रत किया जाता है। मंगला गौरी की पूजा में सोलह प्रकार के फूल, सोलह वृक्षों के पत्ते, सोलह दूर्वा, सोलह पत्ते धतूरे के, सोलह प्रकार के अनाज, सोलह पानपत्ते-सुपारी और इलायची चाढ़ाएं। थोड़ा सा जीरा व धनिया भी चढ़ाएं। क्षमा प्रार्थना और प्रणाम करके विशेष अर्घ देना चाहिए। परिवार की सबसे वृद्ध महिला (सौभाग्य) के चरण स्पर्श कर सोलह लड्डुओं का बायना दें।
श्रावण स्वाध्याय
वैदिक धर्म में स्वाध्याय की महिमा बार-बार बताई गई है। चारों वर्णों में प्रमुख वर्ण ब्राह्नण का स्वाध्याय ही मुख्य कर्तव्य है। ब्राह्मण को चातुर्वण्य देह विराट पुरुष का सर्वश्रेष्ठ अंग मुख माना गया है। स्वाध्याय से यह शरीर ब्रह्मप्राप्ति के योग्य बनता है। जो वस्तु जिसको प्रिय होती है, उसी से उसकी पूजा और तृप्ति की आशा है, इस विषय में मनुस्मृति।। 3।। 89।। 75 ।। श्लोक प्रमाण रूप उद्धृत किए जाते हैं।
।। स्वाध्यायेनार्चयेत ऋषीन्, हामैर्देवान यथा विधि।
।। पितृ॰छाद्धैश्च नृनन्नैर्मूतानि बलिकम्र्मणा।।
यानी स्वाध्याय से ऋषियों की होम से देवों की, श्राद्ध से पितरों की, अन्न से मनुष्यों की, बलिकर्म से क्षुद्र प्राणियों की पूजा तृप्ति होती है। प्राचीन काल में सावन महीने में वेद परायण के विशेष आयोजन पर बहुत बल दिया जाता था। वेदाध्ययन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से आरम्भ किया जाता था, और इसे श्रावणी, उपाकर्म भी कहा जाता है। आजकल धार्मिक आस्थावान यज्ञोपवीत धारी द्धिज श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को गंगा-यमुना तट या किसी पवित्र नदी पर जाकर सामूहिक रूप से पंचगव्य प्राशन कर जाने-अनजाने में हुए पापों की क्षमा मांगते हैं। किसी पवित्र स्थान पर बैठकर अरुंधति सहित सात ऋषियों का पूजन कर नया यज्ञोपवीत धारण करें।
राष्ट्रीय स्वाभिमान के परिपेक्ष्य में
रवींद्रनाथ ठाकुर के आह्नन पर बंग-भंग के विरोध में 26 अक्टूबर सन् 1905 को बंगाल में ‘राखी-बंधन’ का महोत्सव मनाया गया। राष्ट्र भक्तों की टोलियां ‘वदें मातरम्’ का गान और शंकर भगवान का संकीर्तन करते हुए भागीरथी स्नान के लिए उमड़ पड़ी थीं। स्नान के बाद केसरिया रंग के धागों की रखियां बांधकर अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया। ‘राखी-बंधन’ महोत्सव (इस वर्ष 11 अगस्त गुरुवार) ने पूरे बंगाल में विदेशी सामानों के बहिष्कार की ऐसी बयार चलाई, कि जगह-जगह स्वदेशी मंत्र मूर्तरूप लेता दिखाई देने लगा। राखी महोत्सव के माध्यम से चतुः सूत्री बहिष्कार, अंग्रेजी भाषा और शिक्षा का बहिष्कार, सरकार द्वारा प्रदत्त सम्मान एंव उपाधियों का बहिष्कार, नियमों का उल्लंघन करने वालों का बहिष्कार किया गया। इस पर्व पर लिए गए संकल्प ने ऐसा अनूठा प्रभाव दिखाया कि विदेशी वस्त्रों की जगह-जगह होलियां जलाई जाने लगीं। मोचियों नें अंग्रेजी जूतों की मरम्मत करनें से इनकार कर दिया। रसोइयों ने मांस आदि बनाना बंद कर दिया। पुरोहितों ने उन धार्मिक-कृत्यों में शामिल होने से मना कर दिया, जिनमें विदेशी चीनी या नमक का प्रयोग होता हो। और तो और कालीघाट के धोबियों तक ने विदेशी वस्त्र धोने से इनकार कर उत्कृष्ट राष्ट्रभक्ति एंव स्वदेशी भावना का परिचय दिया।