दरगाह पर धार्मिक कार्यक्रमों की शुरूआत 31अक्टूबर से होगी। आस्ताने के सज्जादानशीन हाजी उस्मान गनी शाह के बेटे सैय्यद अयान गनी ने बताया कि 31 अक्टूबर को हाजी उस्मान गनी शाह की ओर से दादामियां की मजार पर जुलूस के साथ चादर पेश की जाएगी। 1 नवंबर को महफिले मिलाद और शोहदा-ए-कर्बला का आयोजन दरगाह अली अहमद शाह उर्फ कल्लन मियां के यहां होगा। 2 नवंबर को पालकी जुलूस निकलेगा।
सरकार वारिस पाक की पालकी में सवार होकर दादामियां आस्ताने के सज्जादानशीन हाजी उसमान गनी शाह, वारिस पाक के दरबार में हाजिरी देंगे। इसके बाद कुर्बान अली शाह उर्फ दादामियां के आस्ताने पर चादर पेश करेंगे। दादामियां के कुल शरीफ की रस्म भी अदा होगी। रात में 11 बजे दरगाह अली अहमद शाह उर्फ कल्लन मियां पर महफिले समा का आयोजन होगा।
3 नवंबर को महफिले समा और खादिम अली शाह का कुल शरीफ होगा। फिर रात में कव्वाली का दौर चलेगा। रात में तीन बजे कुरआनख्वानी और सवा चार बजे हाजी वारिस अली शाह का कुल शरीफ होगा। 4 नवंबर को सुबह नौ बजे सैय्यद इब्राहिम शाह, सैय्यद अली अहमद शाह उर्फ कल्लन मियां, सैय्यद वसी अहमद शाह उर्फ शब्बन मियां आदि के कुल होंगे। 6 नवंबर को आस्ताना हजरत कुर्बान अली शाह उर्फ दादामियां का गुस्ल होगा और अकीदतमंदों को प्रसाद वितरित किया जाएगा।
हाजी सैय्यद अली द्वारा सन् 1879 ई. से शुरू इस परंपरा की शुरुआत की गई थी। देवा शरीफ की मजार को हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यह मेला हर साल कार्तिक मास के करवा चौथ से शुरू होता है। इस मेले में पशुओं का विशाल बाजार लगता है। जहां यह मेला लगता है, वह बाराबंकी जिला मुख्यालय से मात्र 12 किलोमीटर हाजी वारिस अली शाह की जन्मस्थली है। हाजी वारिस अली शाह मानवता के प्रेमी थे और सभी समुदाय के लिए उन्होंने कार्य किए थे। हिंदु समुदाय ने उन्हें उच्च सम्मान में रखा तथा उन्हें एक आदर्श सूफी और वेदांत का अनुयायी मानते थे।