अंग्रेज मानते थे कि अगर हिंदू मुसलमान एक हो गए, तो उनकी हुकूमत सिमट कर रह जाएगी। इसलिए जब भारत में सुधार के नाम पर मिंटो मार्ले रिफॉर्म लाया गया, अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमान के बीच गहरी खाई खोदने की चाल चली। वोटिंग में मुसलमानों को अधिक और हिंदुओं को कम अधिकार दिए, जिससे दोनों ही धर्मों के लोगों में झगड़ा बढ़ गया। अंग्रेज झगड़े को और बढ़ाते कि मौलाना मजहरुल हक ने दखल दिया और जमकर इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि दो धर्मों के बीच खाई बढ़ाकर राज करने का अंग्रेजों का यह खतरनाक मंसूबा है।
दोनों तरफ के कट्टरपंथी उन्हें अपशब्द कहते, कोसते, बुरा-भला कहते, पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उनका मानना था कि भारत का सच्चा पुत्र वही है जो एकता, भाईचारे का केवल समर्थक ही न हो, इसके लिए मिट जाने का जज्बा भी रखे। एक रोज पटना में इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ छात्र वहां के प्रिंसिपल के भेदभावपूर्ण रवैये के विरुद्ध लड़कर कॉलेज छोड़ आए। उनमें से अधिकतर हिंदू विद्यार्थी थे। उन्हें अब चिंता सता रही थी कि इस मुश्किल में उनके साथ यहां कौन खड़ा होगा। उनके पास इस विरोध के बाद ठंड में रात गुजारने की जगह तक नहीं थी।
उन्हें एक उम्मीद मौलाना मजहरुल हक में नजर आई। उन्होंने रात में ही वहां जाना तय किया और जुलूस की शक्ल में उनके घर की तरफ चल निकले। मौलाना ने उन्हें निराश नहीं किया। गंगा किनारे स्थित अपने एक करीबी का बंगला उनके लिए खुलवा दिया। जिस घर में वह रह रहे थे, वहां निर्माण चल रहा था। वह पूरी रात उन बच्चों के साथ रहे ताकि उन्हें ढांढ़स और हौसला रहे कि वे अकेले नही हैं। कुछ दिन बाद वहीं रहकर उन्होंने उन स्टूडेंट्स के लिए एक घर बनवाया जिसे नाम दिया- सदाकत आश्रम। आगे चलकर सदाकत आश्रम स्वतंत्रता संग्राम का एक केंद्र बन गया।
संकलन : हफीज किदवई