पुलिस पीछे लग गई और तीन दिन बाद गिरफ्तारी का वारंट लेकर उसके घर जा धमकी। पुलिस नेमीचंद को ले जाने लगी तो उसके अनेक साथी भी साथ-साथ चल दिए। साथियों ने नेमीचंद से बात करनी चाही मगर पुलिस ने मना कर दिया। इस पर नेमीचंद ने साथ चल रहे पुलिस अधिकारी दातरे से कहा, वह उसे वाहन से उतर कर थोड़ी देर साथियों से मिलने दें। दातरे नहीं माने और ड्राइवर को गाड़ी बढ़ाने को कहा। नेमीचंद को गुस्सा आ गया और उसने गाड़ी की चाबी खींच ली। पुलिस और उसके बीच हाथापाई की नौबत आ गई। बरसात के दिन थे। सड़क पर कीचड़ भी खूब थी।
मौका देखकर नेमीचंद ने नीचे कूदकर पुलिस अधिकारी दातरे पर कीचड़ फेंकनी शुरू कर दी। फिर क्या था, उसके तमाम साथी कीचड़ फेंकने लगे। थोड़ी ही देर में अधिकारी कीचड़ से सन गया। वह सीधे कलेक्टर कर्णिकर के पास गया और पूरी बात बताई। नतीजा यह कि बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स भेजकर नेमीचंद को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उसे बड़ी यातनाएं दी गईं। बाद में नेमीचंद और उसके तीन साथियों कन्हैयालाल, मिश्रीलाल और राजमल को तराना और इंदौर की जेल में रखा गया। उन्हें तीन महीने की सजा सुनाई गई। लेकिन उनके हौसले कम नहीं हुए। देश को आजाद कराने के अपने अभियान में वे लगे ही रहे।– संकलन : रमेश जैन